साहित्य चक्र

25 January 2020

जीवन की ये कैसी लीला



मैंने देखें हर रंग जो,लोगों ने मुझे दिखाएँ थे..
हर लम्हा छूट गया मुझसे, जो मैंने खुद ही सजायें थे..
हाँ मैं थक गयीं हूँ , अब लोगों की बातें मुझे चुभती हैं...
नहीं कोई अस्तित्व मेरा, लोग ज़लील कर जाते हैं..
जिनकी अपनी औकात नहीं, वो भी दो टूक बोल जातें हैं..
जीवन की ये कैसी लीला, सुख दे कर भी रुला जाती हैं...
हम दुःख में तो रोते ही हैं, हम सुख में भी आँसू बहाते हैं..
जीवन ही हैं वो काल चक्र, जो सबको सबक सिखाती हैं...
हमें याद वो आतें हैं, जिनकी साँसे रुक जाती हैं...
जीवन भी कैसे खेल खेलाती, जीतेजी जो याद ना आयें थे...
मरने के बाद हमें उनकी, याद बहुत ही आती हैं...
आँखों में आँसू होते हैं, दिल में इक आह् सी रह जाती हैं..
हमें याद वो आतें हैं, जिनकी साँसे रुक जाती हैं...
हाँ मैं थक गयीं हूँ, अब लोगों की बातें मुझे बहुत चुभती हैं...


                                          रश्मि शर्मा


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