बंद खिड़कियों से जब
पड़े परदे को हटाकर
थोड़ी सी धूप
थोड़ी सी रोशनी
अंधेरे को चीर कर
अंदर मेरे कमरे में दाखिल होती है
मैं आने वाले पल में
नये सपनों
नयी मंजिलों
को पा लेने की
उम्मीद से फिर से
भर जाती हूँ
इक उमंग मुझे
भीतर तक छू जाती है
जिंदा हूँ मैं
और मेरे सपने भी
मेरे हौसले
नयी रोशनी पा जाते हैं
और मैं
फिर जी जाती हैं।
मंजू 'मन'
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