देश की एकता और अखंडता में जो,
सबसे बड़ा रोड़ा है वो है जातिवाद,
हर व्यक्ति अपनी जाति की श्रेष्ठता,
सिद्ध करने में व्यर्थ की बहस झगड़े,
और खून - खराबा करने पर तुला है,
कोई उनसे पूछे कि ईश्वर ने तो सिर्फ़,
दो ही जातियाँ बनाई हैं स्त्री व पुरुष,
फ़िर तुम कौन हुए प्रकृति के विरुद्ध,
असंख्य जाति की उत्पत्ति करने वाले,
हे मानव जिन्हें हम जातियाँ बोलते हैं,
दरअसल ये तो सैंकडों वर्ष पहले के,
वो पुश्तैनी कार्य हुआ करते थे,
जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते गये,
मसलन बाल काटने वाला नाई हुआ,
मिट्टी के बर्तन बनाने वाला कुम्हार,
जिसने जूते चप्पल बनाये वो चमार,
कपड़े सिलने वाला दर्ज़ी,
आभूषण बनाने वाला सुनार,
लोहे का काम करने वाला लौहार,
इसी सिद्धांत पर जातियाँ स्वतः बनी!
परन्तु आज कोई भी काम,
किसी विशेष जाति का नहीं रह गया,
जीवन यापन हेतु सभी स्वतंत्र हैं,
जिससे घर चले वही काम अच्छा,
जूतों के शोरूम वाला चमार नहीं,
बर्तन बेचने वाला कुम्हार नहीं,
ब्यूटी पार्लर चलाने वाली नाई नहीं,
शिक्षक अब शास्त्री या आचार्य नहीं,
ये दोगलापन भी भारत मे ही है,
क्योंकि यह देश जितना उच्च शिक्षा,
की तरफ़ अग्रसर हो रहा है,
उतना ही अंधविश्वास व दकियानूसी,
बातों की तरफ़ भी गतिमान है,
पहले के लोग ग्रामीण परिवेश के,
अशिक्षित व अंधविश्वासी होते थे,
लेकिन आज का शिक्षित समाज भी,
इन्हीं बेफ़िज़ूल की बातों में पड़कर,
आपस में बैर, नफ़रत और ईर्ष्या,
के बीज बोता जा रहा है,
क्या अपनी जाति में झगड़े नहीं होते,
अगर जाति ही सब कुछ होती तो,
क्यों भाई - भाई में, चाचा-भतीजे में,
लड़ाई होतीं हैं, वो तो एक कुल के हैं,
सिर्फ़ मैं ही श्रेष्ठ यह मात्र भ्रांति है,
लोग क्यों भूल जाते हैं कि,
महापुरुष तो हर जाति - धर्म में,
पैदा हुए हैं जिन्होंने देश के लिए,
अनेकों भलाई के कार्य किये हैं,
अपना सर्वत्र न्यौछावर किया है,
उनका वर्चस्व आज भी क़ायम है!
हमें ऐसे लोगों पर शर्म आती है जो,
जातिवाद की आड़ में देश में,
नफरत की आग फैलाते हैं,
और इसके विकास में बाधा बनते हैं,
उनकी तुच्छ मानसिकता आज भी,
समाज को खोखला कर रहीं है,
उन्हीं की वजह से ये राष्ट्र कभी भी,
उन्नति - प्रगति नहीं कर पाएगा,
पश्चिमी देश हमसे कई साल आगे हैं,
क्योंकि वे देश जाति धर्म में नहीं बंटे,
जिस तरह से अब भारत में भी,
शिक्षा का प्रसार हो रहा है तो,
आशा है आने वाले कुछ सालों बाद,
हमारे यहाँ से भी यह कुरीति समाप्त,
हो जाएगी, वैसे भी मानव की श्रेष्ठता,
उसकी जाति से नहीं बल्कि उसके,
विवेक, ज्ञान, कर्म, संस्कार, व्यवहार,
पर निर्भर है, उच्च कुल का मानव,
वही है जिसमें ये गुण विद्यमान है,
एकबार अहं की पट्टी खोलकर देखिए,
समस्त मानव जाति कितनी सुंदर है,
अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दीजिये,
देखना एक ना एक दिन यह बुराई,
अपने आप ही समाप्त हो जाएगी,
तब हम साँस लेंगे एक वास्तविक,
स्वतंत्र भारत की आबो हवा में,
अन्यथा हम सच्चे मनुष्य ही नहीं बने।
- आनन्द कुमार
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