साहित्य चक्र

02 December 2022

शीर्षकः नज़रबट्टू


"मेरे बच्चे को नज़र लग गयी है तभी बीमार है, आज ही इसकी नज़र उतारती हूँ" ऐसा हमने भी कहा है और सभी के मन में कभी न कभी ये आता ही होगा। झट से हम काला टीका लगाकर या नज़रबट्टू पहनाकर या कोई भी उपाय करके उसको बुरी नज़र से बचाने की कोशिश में लग जाते हैं। कुछ लोग तो झाड़-फूंक भी करवा डालते हैं। मसलन बुरी नज़र से बचाने के लिए किया गया उपाय या लगाई व पहनाई गयी वस्तु नज़रबट्टू कहलाती है।





आइए, इसे दूसरे रूप में देखते हैं। अगर आपका बच्चा बहुत तंदरुस्त और सुंदर है, पढ़ाई में बहुत अच्छा है या आपने घर बहुत सुंदर बनवाया है या आपकी पदोन्नति हुई है तो जिन लोगों में हीन भावना होगी या जो आपसे मुकाबला करते होंगे, उन्हें आपकी ये अच्छाई या तरक्की रास नहीं आएगी, वो कुछ न कुछ, कहीं न कहीं बुराई तो ढूंढेंगे ही--बस ये बुराई नज़रबट्टू का काम करेगी। जैसे ही उन्होंने बुराई की, समझिए कि आपकी नजर उतर गई। वो हमारे लिए नज़रबट्टू जैसे हो जाते हैं। नज़र तो एक ही बार लगेगी, बार-बार तो लगेगी नहीं। उनकी बुरी नज़र से हमारी नज़र स्वतः उतर जाती है।

इसको ऐसे समझ सकते हैं कि यदि कहीं कोई कार्यक्रम चल रहा है और अचानक कुछ मिनट के लिए लाइट चली जाए तो रोशनी में वो चंद पलों का अँधेरा नज़रबट्टू का काम करेगा। समझिए उस अंधेरे ने नज़र उतार दी, अब यही कमी देखकर लोग खुश होंगे, नज़र लगेगी ही नहीं। कर दिया न उस अंधेरे ने नज़रबट्टू का काम।

नए घर को नज़र से बचाने के लिए नींबू मिर्च वो काम नहीं करेगा जो खुद लोग सुंदर घर में कमियाँ निकालकर नज़र उतार जायेंगे। कोई कहेगा मुख्य द्वार गलत जगह है, मंदिर इधर होना चाहिए। रसोईघर छोटा है आदि आदि। अब इतना कह दिया, घर अच्छा नहीं है तो नज़र लगने का प्रश्न ही नहीं। वो घर के लिए नजरबट्टू का काम खुद ही कर जाते हैं।

ऐसे ही हर शादी में नजरबट्टू होते ही हैं। इनमें फूफा, मौसा और जीजा प्रथम श्रेणी में आते हैं। जब तक दो चार लोग मुँह फुलाकर न घूमे, शादी का मज़ा ही नहीं। बस सबका ध्यान इन बेमतलब के नाराज़ लोगों पर केंद्रित रहता है, उन्हें शादी में कम, इनकी नाराज़गी की वजह जानने में उत्सुकता होती है, कुछ लोग उस पर नमक मिर्च भी डाल देते हैं और इन दो तीन मुँह फुलाकर घूमते लोगों के कारण शादी शांति से निपट जाती है, ये खुद ही नज़रबट्टू का काम कर जाते हैं।

हमारे यहाँ एक रिवाज़ है जिसे "चाचर पूजा" के नाम से जाना जाता है। इसमें शादी निपटने के बाद ससुराल से आई बेटी या बुआ सर पर थाली रखकर घूमती है और शादी में हुई कमियाँ या बुराइयाँ कहती जाती है, कमी न भी हो तो भी निकाली जाती है। उस थाली में कुछ नेग देकर उन्हें प्रसन्न किया जाता है। इस रिवाज़ के पीछे मुख्य कारण है नज़र न लगने देना या नज़र उतारना। ये रिवाज़ नज़रबट्टू का काम करता है।

कहने का तात्पर्य है कि बुरी नज़र से बचाने के लिए अच्छाई के साथ बुराई अपने आप में नज़रबट्टू है। इसके लिए अलग से उपाय करने की जरूरत ही नहीं, कुछ लोगों की बुरी नज़र अनजाने में नज़रबट्टू का काम कर जाती है। चले थे बुरा सोचने पर अपने शब्द बाणों से नज़र उतार कर चलते बने।

तो मित्रों, ये कमी, बुराई खोजने वाले लोग काले टीके और नींबू मिर्ची जैसे होते हैं तो इनसे बिल्कुल न घबराएं। इनकी आवभगत करें क्योंकि जब तक ये कमियाँ निकालेंगे नहीं, नज़र लगने का खतरा बना रहेगा। ये लोग तभी संतुष्ट होते हैं जब अच्छाई में बुराई का पैबंद लगा देते हैं और ऐसा करते ही हमारे लिए नज़रबट्टू बन जाते हैं।

कहते हैं काला टीका, काला धागा अर्थात काली चीज़ धारण करने से नज़र नहीं लगती तो जिनका मन काला हो वो नज़रबट्टू ही हुए न !!
अभी लिखने को बहुत है पर आज के लिए बस इतना ही।

लेखिका- नीरजा मेहता


No comments:

Post a Comment