पशु पक्षियों के आशियाने
लगे जब से उजड़ने
छोड़ वो निज निवास स्थल को,
लगे जहाँ तहाँ भटकने!
उन मूक पशु पक्षियों के डेरा,
जंगल ही है एक मात्र सहारा!
लेकिन
उन जंगलों में भी इंसानो का नजर,
ढहाने लगा कहर!!
रूक सी गयी उनसबो की जिंदगी,
इंसान बन गया अब सिर्फ मतलबी!
हताश, निराश मे वो सब भटकने लगे,
भोजन की तलाश में इंसानो की बस्ती में आने लगे!
मारे जाने लगे वो सब बेहताशा ,
सुधि लेने हेतु किस से करे आशा?
विवेकशील प्राणी तो बस,एक इंसान है
लेकिन अब वही तो,बना शैतान है!
इंसान अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु
पशु पक्षियों के जिंदगी मे बनकर आया है राहू केतु!
अनेक पशु पक्षियों हो गये हैं विलुप्त,
और विलुप्ति के कगार पर पहुंच गये कुछ इस वक्त!
जो रफ्तार पकड़ी है जंगलों के कटाई अभी,
वो दिन अब दूर नहीं है,
मान ले सभी!
सिर्फ़ पिंजरे और चिड़ियाघरों मे ही नजर आयेगे पशु पक्षी,
जंगल के साथ साथ समाप्त हो जायेंगे ,ये सभी!
अभी भी वक्त है, जागो सब इंसान,
जंगलों की रक्षा हेतु दे सब, ध्यान!
सिर्फ़ वे सब पशु पक्षी ही नहीं, बल्कि
और भी सारी जरूरते पूरी होती है जबकि!
सबकुछ का रखते हुए ध्यान,
इंसानो, अपने इंसानियत का दो पहचान !
मान लो "चुन्नू"का कहना,
बचाकर जंगलों को अपना धर्म है निभाना!
आशियाने भी उन पशु पक्षियों के,बच जायेगे,
हम इंसानो की दुनिया भी सुरक्षित रह जायेगे!
लेखक- चुन्नू साहा
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