साहित्य चक्र

04 December 2022

लघुकथा: मृत्यु की रात



घर में निर्मला की मम्मी उसका भाई राजू छोटी बहन पिंकी घर में थे। पिता भोपाल से बाहर अपनी छोटी बहन की सगाई करने गए थे। तभी दो और तीन दिसंबर की रात १९८४ को मृत्यु की रात बन कर आई।





                      निर्मला की मकान मालिक ने दरवाजा खटखटाया बोली धुआं-धुआं फैला है और आंखों में जलन हो रही है। जैसे ही दरवाजा खोला तो बाहर भीड़ दौड़े जा रही जान बचाने।

        निर्मला का भाई भी मोहल्ले वालों के साथ जान बचाने कहां गया पता ही नहीं। निर्मला की मां बहन छोटी अपनी सहेली के घर पहुंचे सहेली से बोली-"चलो अपन भी कहीं चलते हैं।" सहेली के पति भी बाहर गए हुए थे। उनके तीन बच्चे थे। 

        वह बोली- "अपन कहीं नहीं जाते"। अपन तो यही घर में रहते हैं।जिसको भी उल्टी आ रही है। उल्टी घर में ही कर लो,लेकिन घर में ही रहेंगे,तो कम से कम घर वालों को अपनी लाश मरने के बाद मिल तो जाएगी।वरना बाहर जाने पर प्राण निकले तो बाहर जाएंगे तो घरवाले मृत्यु होने पर लाश ढूंढते फिरेंगे।



                              - संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया


No comments:

Post a Comment