साहित्य चक्र

06 April 2025

कविता- प्रिय स्त्री




हे प्रिय स्त्री, ये तुम ने क्या कर डाला,

एक मां के लाल को क्यों तुमने,
सीमेंट के ड्रम में भर डाला।

एक बेटी से छीना, पिता का साया,
क्यों तुझे जरा सा तरस नहीं आया।

बहन से भाई छीन लिया,
क्यों ना तेरा सीना कंपकंपाया।

तुझे जरा तरस नहीं आया,
नारी के माथे पर क्यों तुमने,
कुलटा होने का कलंक लगाया।

एक मां के लाल को क्यों तुमने,
सीमेंट के ड्रम में भर डाला।

                                   - कंचन चौहान


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