आंखों में उतरती
लफ़्जों में तैरती
कहानी नहीं
अब हकीकत सी लगती
हां मैं कविता हूँ !
शब्दों को छूकर
रुह को टटोलती
सुकून पाकर
मन की सहेली
हां मैं कविता हूँ !
मौन कल्पनाओं का स्वर
शब्दों का संयोजन
किरदारों का आकाश
तर्कों पर वार
हां मैं कविता हूँ।
व्यथाओं का उमड़ता सागर
अमानवता की परछाई
सभी मौसम का रंग समेटे
जीव निर्जीव की जुबानी
हां मैं कविता हूँ।
बेताब कलम की ख़्वाहिश
स्याह सी स्याही में घुलकर
पन्नों पर जीवंत हो जाती
अलंकृत करती संस्कृति
हां मैं कविता हूँ।
- अंशिता त्रिपाठी
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