साहित्य चक्र

06 April 2025

मेरी कविता



मेरी कविता आज की
कविता से कुछ अलग है।
मेरी कविता में शब्दों के
उलझे जाल नही है।
मेरी कविता शब्दों का गबन नही है।
न ही अधमरे विचारों का वमन हैं।
इसमें अंतर्मन में कोलाहल है।
इसमें उदास चूल्हे की चीख है।
मेरी कविता चेतना और
वेदना का अनुवाद है।
इसमें शब्दों की हकलाती
तुकबंदी नही है।
न ही तुकबंदी में
तुतलाती कविता है ,
इस कविता में शब्दों में
ढला अक्श है।
मेरे लिए कविता महसूस
की जाने वाली एक अनुभूति है।
कविताएं आजकल शब्दों
में सिमटा कोलाहल है।
कविता साहित्य की मंडी में
बिकती भावनाएं हैं।
मेरी कविता कलकल
बहती स्वप्नीली नदी है।
मेरे लिए कविता अनहदों
को गुनगुनाना है।
मेरे लिए कविता शब्दों
के संयोजन को बैठाना नही है।
मेरी कविता मात्राओं और छन्दों
में लिपटी नव बधु नही है।
बल्कि व्याकरणों के आचरणों
दूर शब्दों का आग्रह है।
मेरी कविता शब्दों की
अंतरध्वनियाँ हैं।
मेरी कविता मन की
आहट का आलेख है।
कविता किसी के लिए मन की अभ्यर्थना है।
किसी के लिए शब्दों की विवेचना है ।
कविता मेरे लिए अंतर्मन की अर्चना है।


                                            - विकास कुमार शुक्ल

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