साहित्य चक्र

28 July 2025

कविता- हुक्मरानों






तुम्हारे कान बंद कर लो हुक्मरानों,
ताकि मासूमों की चीखों का करुण क्रंदन तुम्हें सुनाई न दे।

आँखें तो तुम्हारी पहले से ही बंद थी,
जो विद्या मंदिरों की जर्जर इमारतें तुम्हें दिखाई न दी।

नन्हें बच्चे जो विद्यालय में भविष्य के सपने संजोकर आए थे,
उन्हें क्या पता था कि
उनकी जिंदगी पर मौत के काले बादल छाए थे।

कुछ पलों में माता पिता ने अपना सबकुछ खो दिया,
उज्ज्वल भविष्य की चाह में उनका लाल मौत की गहरी नींद सो गया।

आज एक शिक्षक के रूप में मेरे मन में जबरदस्त आक्रोश है,
मैं मेरे विद्यालय में बच्चों को ईमानदारी
व नैतिकता का पाठ पढ़ाता रह गया।

इधर कुछ चुनिंदा लोग जो कागज पर सब सही दिखाते रहे,
उनकी लापरवाही से आज एक विद्यालय में
कई बच्चों का स्वर्णिम सपना हमेशा के लिए ढह गया।

- भुवनेश मालव



No comments:

Post a Comment