शब्दों के भेद को अभेद जो सकें,
शब्दों के गूढ़ रहस्यों को जान वो सके।
शब्दों में अंतःकरण पीड़ा का हो,
या शैलाब फिर खुशियों की।
या हो कोई अनछुई सी कोमल प्रेम भाव,
या रस हास्य क्रोध, घृणा, आदि के।
सब पर वर्चस्व शब्दों के भाव भंगिमा की,
लहराती, इठलाती शब्द सुरमई सी।।
शक्ति को दर्शाती तो कभी क्षमा को,
कभी रौद्र रूप में आती, तो कभी शांत किसी झील सी।
शब्दों के भेद को अभेद जो सकें,
शब्दों के गूढ़ रहस्यों को जान वो सके।
- पूनम गूंजा

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