साहित्य चक्र

28 July 2025

कारगिल शहीदों को नमन





कारगिल की चोटियों पर थे बैठे कब्ज़ा जमा,
पाक घुसपैठियों ने की थी जानबूझ ये खता।
सेना ने खदेड़ने को करने फिर से हासिल फतह,
आप्रेशन विजय चलाया बना जो जीत की वजह।

घुसपैठ को करने विफल वापिस पाने को जमीं,
दुश्मन को मार गिराने रणभेरी थी बज उठी,
सीना तान भूखे –प्यासे दिन –रात सेना रही डटी,
दांत खट्टे दुश्मन के करके ही वो फिर हटी।

इतना आसान नहीं था घुसपैठियों को भगाना,
उंचाई पर थे वो ,सेना को था चढ़ कर जाना,
दृढ़ विश्वास,अदम्य हौंसला और योजना के बल,
हर नौजवान दुश्मन के लिए, पहुंचा काल बन।

शुष्क हवा ,बर्फीली चोटियाँ , राहें थी दुर्गम,
पाक के नापाक इरादों को कुचलना न था सुगम,
भारत के फौलादी इरादों से दुश्मन हुआ बेखबर,
टूट गया वह देख साहस ,वीरता और समर्पण।

खदेड़ दिया नीचों को, जवानों ने लहू बहाकर,
नुकीली चोटियों के उपर चढ़ते रहे निरंतर,
इच्छा और विश्वास करने स्वयं का बलिदान,
बेखौफ मौत से लड़े ,बढ़ाने भारत का मान।

कोटि-कोटि नमन उन शहीद अमर वीरों को,
अदम्य साहस से चमकते उन फौलादी हीरों को,
मां भारती की शान खातिर हो गये जो शहीद,
भारत भूमि का जर्रा-जर्रा आज उनका है मुरीद।


- लता कुमारी धीमान


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