2025 का वैश्विक परिदृश्य राजनीतिक पुनर्संरचनाओं, आर्थिक आत्मनिर्भरता की लहरों और क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धाओं से गहराई से प्रभावित हो चुका है। इन बदलते हालातों में भारत और चीन- एशिया की दो सबसे बड़ी महाशक्तियाँ- न केवल एक-दूसरे की राजनीतिक चेतना का आईना बन चुकी हैं, बल्कि उनके आपसी संबंधों ने वैश्विक संतुलन को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है।
आज जब हम भारत-चीन संबंधों पर दृष्टिपात करते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि यह रिश्ता केवल सीमा पर तैनात सैनिकों, डोकलाम या गलवान जैसी घटनाओं या ब्रिक्स सम्मेलनों तक सीमित नहीं है। यह संबंध अब सामरिक द्वंद्व, आर्थिक गूंथन, कूटनीतिक समीकरण और सांस्कृतिक विभाजनों का एक जटिल जाल बन चुका है।
एक ओर चीन वैश्विक व्यापार का केंद्र बनने की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है, वहीं भारत "वसुधैव कुटुम्बकम्" की भावना के साथ एक स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में उभर रहा है। इन दो देशों के बीच की दूरी केवल भौगोलिक नहीं, वैचारिक और रणनीतिक भी है। 2025 में जब हम इस पड़ोसीपन की पड़ताल करते हैं, तो पाते हैं कि एक ओर तो आपसी व्यापार का आंकड़ा 120 अरब डॉलर से भी अधिक हो चुका है, वहीं दूसरी ओर सीमा पर तनाव, आपसी अविश्वास और सैन्य होड़ ने इस संबंध को लगातार डावांडोल बनाए रखा है।
सीमा विवाद- शांति की आकांक्षा बनाम रणनीतिक संदेह- भारत और चीन के बीच सीमा विवाद कोई नया विषय नहीं है। 1962 का युद्ध, 1987 का सुमदोरोंग चू गतिरोध, 2013 का देपसांग संकट, 2017 का डोकलाम गतिरोध और 2020 का गलवान संघर्ष- ये सब इस बात की गवाही देते हैं कि सीमाएं आज भी तय नहीं हो पाईं। 2025 में भी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सैन्य गतिशीलता, निगरानी उपकरणों की तैनाती और ‘शांतिपूर्ण संवाद’ के खोखले वादों के बीच एक भयावह स्थायीत्व मौजूद है।
गलवान घाटी में हुई हिंसा ने दोनों देशों के मध्य विश्वास की अंतिम कड़ी को भी झकझोर दिया था। 2020 के बाद से ही दोनों पक्षों के बीच लगातार सैन्य और कूटनीतिक वार्ताएं हुईं, कुछ क्षेत्रों में सैन्य पीछे हटना भी हुआ, परंतु विवाद के मूल कारण- सीमा निर्धारण की स्पष्टता की अनुपस्थिति- को अब तक सुलझाया नहीं जा सका।
2025 तक आते-आते चीन ने अरुणाचल प्रदेश को "दक्षिण तिब्बत" बताना बंद नहीं किया है, वहीं भारत भी अब तवांग में सैन्य और रणनीतिक निर्माण को आक्रामक रूप में तेज़ कर चुका है। दोनों देशों के बीच "सहमति से असहमति" की यह स्थिति न केवल क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा है, बल्कि एशिया में बड़े स्तर पर सैन्य प्रतिस्पर्धा को जन्म दे रही है।
व्यापारिक निर्भरता- विरोधाभासों की आर्थिक साझेदारी : चौंकाने वाली बात यह है कि इन तमाम सैन्य और रणनीतिक तनावों के बावजूद भारत और चीन के बीच व्यापार लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2024-25 में द्विपक्षीय व्यापार का आंकड़ा 120 अरब डॉलर को पार कर गया है, जिसमें चीन भारत को 100 अरब डॉलर से अधिक का निर्यात करता है, जबकि भारत का निर्यात चीन को लगभग 20 अरब डॉलर पर ही ठहर गया है। यह व्यापारिक असंतुलन चिंता का विषय बना हुआ है।
भारत में मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाओं के कच्चे माल (API), खिलौनों, सोलर पैनलों और भारी मशीनरी में चीनी आयात का गहरा प्रभाव है। वहीं भारत चीन को मुख्यतः लौह अयस्क, कपास और कुछ रसायन निर्यात करता है। यानि जहां एक ओर भारत "आत्मनिर्भर भारत" की बात करता है, वहीं दूसरी ओर उसकी आपूर्ति श्रृंखला चीन पर बेतरह निर्भर बनी हुई है।
भारत सरकार ने कई बार विभिन्न चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध, FDI नियमों में सख्ती और चीनी कंपनियों पर जांच के जरिए कड़ा संदेश देने की कोशिश की है, लेकिन चीनी निवेश अब भी भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गहराई से जड़ें जमाए हुए है। 2025 में चीन की कंपनियाँ भारत में फिनटेक, ऑटोमोटिव और फार्मा क्षेत्रों में बड़े हिस्सेदारी वाली साझेदारियों में सक्रिय हैं।
रणनीतिक मोर्चा- हिन्द-प्रशांत में प्रतिस्पर्धा और 'QUAD' की छाया- भारत और चीन के रिश्तों का बड़ा आयाम हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में भी परिलक्षित होता है। चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), ग्वादर और हम्बनटोटा में बंदरगाह विकास और दक्षिण चीन सागर में आक्रामक सैन्य विस्तार भारत के लिए गहरी चिंता का विषय बने हुए हैं।
भारत ने जवाब में ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को सशक्त बनाया है, क्वाड (QUAD) के साथ रणनीतिक सहयोग को प्रबल किया है और अंडमान-निकोबार से लेकर अरुणाचल तक के क्षेत्रों में सैन्य आधारभूत संरचना को दोगुना किया है। अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के साझा सैन्य अभ्यास, सामुद्रिक निगरानी और चिप निर्माण जैसी तकनीकी साझेदारियाँ चीन को संतुलित करने की रणनीति का हिस्सा हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि 2025 तक भारत ने साइबर सुरक्षा और स्पेस डिफेन्स के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है, जो चीनी तकनीकी निगरानी के खतरों से मुकाबले की रणनीति का एक अहम हिस्सा है।
- प्रशांत चौबे

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