जिंदगी में कुछ यात्राएं केवल मात्र गंतव्य तक पहुंचने के लिए नहीं होती, बल्कि वे हमें खुद से मिलाने का जरिया भी होती हैं। उन सुकून भरे पलों में हमें खुद से मिलने का तथा खुद का अवलोकन करने का भी समय मिल पाता है। कुछ दिनों के लिए समस्त दुनियां को दरकिनार कर हमें आत्ममिलन की सुखद अनुभूति होती है। ऐसे ही एक यात्रा हिमाचल प्रदेश के ऊंचे पर्वतों में लाहौल स्पीति की हसीन वादियों में बसे केलांग की तरोताजा हो गई। यह यात्रा मेरी जिंदगी की सबसे रोमांचक और अविस्मरणीय यात्राओं में से एक रही। यह यात्रा सिर्फ एक भौगोलिक सफर नहीं थी, बल्कि आत्मा को सुकून देने वाला एक अनोखा अनुभव भी था।
अप्रैल का महीना था। बच्चों की छुट्टियों के चलते अचानक ही हमारा कार्यक्रम बना कि क्यों ना केलांग चलें? पतिदेव जी केलांग में सरकारी कार्य क्षेत्र में कार्यरत थे। उन्हें घर से गए डेढ़ महीना हो गया था। लाहौल स्पीति में भारी बर्फबारी होने के कारण चार-पांच महीने यह क्षेत्र बाकी दुनिया से बिल्कुल कट सा जाता था। एक हफ्ते में दो दिन हेलीकॉप्टर की फ्लाइट होती थी जो मौसम पर ही निर्भर करती थी।
बच्चों के बार-बार आग्रह करने पर हमारा यह कार्यक्रम बना लेकिन दिक्कत यह थी कि अभी भी रोहतांग दर्रा बंद था और हेलीकॉप्टर की उड़ान ही एकमात्र माध्यम था वहां पहुंचने के लिए। हेलीकॉप्टर की बुकिंग के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी हमें,,, तभी जाकर कुछ दिनों में बुकिंग हुई। बेटियों की भी जिद थी कि इस बार हेलीकॉप्टर से जाएंगे, लेकिन अब इस बात पर असमंजस की स्थिति थी कि हम तीनों अकेली कैसे जाएंगी? बेटियां भी अभी छोटी ही उम्र की थी तो विषय थोड़ा विचारणीय था। सोच विचार कर यह तय हुआ कि क्यों ना मायके से भैया को कुल्लू भुंतर तक साथ ले लिया जाए।
भुंतर से सुबह 8:00 बजे की फ्लाइट बुक हो गई थी तो हमें बिलासपुर से रात को ही चलना पड़ना था ताकि हम सुबह 8:00 तक भुंतर हवाई अड्डे पर पहुंच सकें। रात की बस थी तो अकेले बच्चियों के साथ जाना मुमकिन भी नहीं था और ससुराल में दो हफ्तों के बाद भागवत कथा का आयोजन तय हुआ था तो घर में भी सभी बहुत व्यस्त थे, इसीलिए भैया को साथ ले जाना बेहतर समझा। भैया भी हंसी खुशी हमें भुंतर तक छोड़ने को तैयार हो गए।
मायके पहुंचकर अगले दिन जाने की योजना बनाई। बिलासपुर बस स्टैंड से रात को कल्लू के लिए 2:00 बजे की बस थी तो उसी के हिसाब से तैयारी में जुट गए। घर से काफी सब्जियां डाल दी गई थी जो अपने खेतों में उगी थी। केलांग में चार महीनों से रास्ते भी बंद थे तो सोचा कि कुछ दिनों के लिए ये ऑर्गेनिक हरी सब्जियां खाने के लिए हो जाएंगी।
मेरी मासी जी के लड़के ने रात को 2:00 बजे हमें अपनी टैक्सी से बस स्टैंड छोड़ा। मेरी दो बेटियां, मैं और मेरा छोटा भैया खुशी खुशी बस में बैठ गए। बस में पंजाब हरियाणा से आए पर्यटक भी बैठे थे। पांच घंटे का सफर तय करते जब हम कल्लू की हसीन वादियों में पहुंचने लगे तो दूर-दूर से बर्फ के पहाड़ दिखाई देने लगे। बस में बैठी कुछ लड़कियां जो पंजाब हरियाणा से घूमने आई थी, उन बर्फ के पहाड़ों को देखकर एकदम से उछलने लगी।
उन्होंने शायद पहली बार ही बर्फ के पहाड़ देखें होंगे तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। दोनों हाथों से तालियां बजाकर वे अपनी खुशी जाहिर कर रही थी। इस रोमांच भरे सफर को तय करते हुए हम सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर भुंतर हवाई अड्डे पर पहुंच गए, लेकिन जैसे ही हम हवाई अड्डे पर पहुंचे तो जिस हेलीकॉप्टर में हमारी बुकिंग हुई थी वह 5 मिनट पहले ही उड़ान भर चुका था, फ्लाइट का समय तो निश्चित था लेकिन हम ही 5 मिनट लेट हो गए थे।
हम सब बहुत उदास हो गए कि अब कैसे जाएंगे? मैंने इन्हें केलांग के लिए फोन किया कि हमारी फ्लाइट तो छूट गई अब अगला प्रबंध कैसे होगा? थोड़ी देर तो ये भी टेंशन में पड़ गए, लेकिन फिर इन्होंने हवाई अड्डे पर बात कर अगली फ्लाइट के लिए हमारी बुकिंग कर दी। उस समय प्रति व्यक्ति का किराया भुंतर से केलांग के लिए ₹700 लगता था। अगली फ्लाइट 1 घंटे के बाद होनी थी तो उस बीच हमने चाय पानी का बंदोबस्त किया और ढाबे पर इंतजार में बैठ गये।
उस समय अटल टनल नहीं बनी थी इसलिए पांच छह महीनों के लिए लाहौल स्पीति बाकी दुनिया से कट जाता था। इन पांच छह महीनों में वहां जाने का यही एक जरिया था। नाश्ता चाय लेने के बाद तब तक हेलीकॉप्टर भी आ गया और बेटियां देखते ही चहक उठीं। उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि पहली बार उन दोनों ने इतने नज़दीक से हेलीकॉप्टर देखा था। एक तरफ हैलीकॉप्टर में जाने की खुशी थी तो दूसरी तरफ भैया को अकेले छोड़ कर जाने का दुख था। मन तो कर रहा था कि उन्हें भी साथ ले जाएं, लेकिन घर में मां भी अकेली थी तो उन्हें वापस जाना था। भैया से विदा लेकर हम हेलीकॉप्टर की ओर बढ़े।
सामान बहुत भारी था तो लोडिंग अफसर मजाक में कहने लगे--"कहीं स्मगलिंग का ही माल तो नहीं है" मैंने भी हंस कर जवाब दिया ,,"सर आप खुशी-खुशी चेक कर सकते हैं, इसमें घर की उगाई हुई सब्जियां ही हैं, बाकी कुछ नहीं है। हंसी मजाक करते-करते हम हेलीकॉप्टर में बैठ गए। हेलीकॉप्टर में सामान ले जाने की भी एक सीमा होती थी। बारह किलोग्राम से ज्यादा सामान ले जाना मना था। बारी-बारी सभी के सामान की चेकिंग हो रही थी, जिसका सामान लिमिट से ज्यादा हो रहा था, उस सामान को बाहर फेंक दिया जा रहा था। मैं भी थोड़ा डर गई थी कि कहीं हमारा सामान भी ज़्यादा न हो, पर हमारा सामान लिमिट में ही था।
सभी औपचारिकताओं के पूर्ण होने पर सभी को जरूरी हिदायतें दी गई और हम धीरे-धीरे आकाश की ओर उड़ने लगे। शुरू शुरू में धुकधुकी सी हो रही थी, मानो हम पंख लगाए आसमान में उड़ रहे हों। आसमान से सभी घर छोटे-छोटे डिब्बे की तरह लग रहे थे और साथ में बहती व्यास नदी एक कूहल की तरह लग रही थी।धीरे-धीरे कुल्लू मनाली से होते हुए हम बर्फीली चोटियों के ऊपर से गुज़रने लगे। आसमान से सफ़ेद बर्फ से ढके पहाड़ और पेड़ों पर बर्फ़ होने के कारण वे गुलदस्ते की भांति प्रतीत हो रहे थे। बेटियां भी उस मनमोहक दृश्य को देखकर पुलकित, रोमांचित हो रही थी।
सच में बर्फीली वादियां प्रकृति की अद्भुत ,अलौकिक एवं अद्वितीय रचना होती है। चारों तरफ सफेद चादर सी बर्फ फैली थी, मानो धरती ने मुलायम सफेद ओढ़नी ओढ़ रखी हो। सुबह का समय था तो बर्फ पर पड़ती सूरज की किरणें सुनहरी चमक बिखेर रही थी। ये बर्फीली वादियां देखने में न केवल स्वर्ग की सी प्रतीत हो रही थी ,बल्कि एक अलौकिक शांति और सुकून भी दे रही थी। 40 मिनट के इस सुहाने सफर को तय करते हुए हम केलांग पहुंचने वाले थे।
हेलीकॉप्टर धीरे-धीरे सिस्सू हेलीपैड की ओर बढ़ रहा था और हम खुशी में झूम रहे थे। हेलीकॉप्टर से उतरते ही पतिदेव ने गाड़ी में बिठाया और हम अपने खुशनुमा अनुभवों को उनके साथ बयां करते-करते केलांग पहुंच गए। लकड़ीनुमा बने उस सरकारी क्वार्टर में हम तीन दिनों तक रुके। वहां चारों तरफ बर्फ से लकदक पहाड़ों को निहारते हुए तीन दिनों का कुछ पता ही नहीं चला। हफ्ते में दो बार फ्लाइट होती थी तो चौथे दिन हम फ्लाइट से वापिस घर चल पड़े। सात-आठ दिनों के बाद घर में भागवत था तो इसीलिए हमें घर आने की भी जल्दी थी, लेकिन उन बर्फ से ढकी हसीन वादियों में जो आनंद हमने तीन दिनों में लिया, वह सुनहरी यादें बनकर हमारी स्मृतियों में ताउम्र जीवंत रहेगा।
- वसुंधरा धर्माणी, बिलासपुर, हिप्र




जयदीप पत्रिका का बहुत बहुत आभार 🙏🏻❤️
ReplyDeleteआपका यह अंक बहुत ही आकर्षक और पठनीय है। सुंदर प्रकाशन के लिए आप बधाई के पात्र हैं। शुभकामनाएं 🎉 🎊
ReplyDeleteAmazing👏🏻✨
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया 🙏🏻❤️
Deleteबहुत शानदार प्रस्तुति। इतनी सुंदरता से वर्णन किया है कि आपका पूरा अनुभव आंखों के सामने चित्रित हो गया
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद 🙏🏻❤️
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