साहित्य चक्र

09 May 2021

माँ के कर्ज से मुक्ति



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कहते है माँ का कर्ज
कभी उतर नहीं सकता है,
सच ही तो है।

नौ माह गर्भ में सहेजती
कल्पनाओं की उड़ान भरती
बढ़ते भार को फूलों सा मान
एक एक दिन गिनती।

मौत के मुँह में झोंक 
मातृत्व सुख के अहसास को
हँसते हुए जन्म देती,
माँ होने के गर्व में 
फूली नहीं समाती।

नारी होने से ज्यादा 
माँ बनकर इतराती।

हम सब लाख गुमान करे
कर्ज उतारने का बखान करें,
कितनी ही सुख सुविधाएं दें,
परंतु माँ के गर्भ में सुरक्षित
नौ महीनों तक दिनों दिन 
बढ़ते बोझ को ढोने के 
खूबसूरत अहसास और
भय मिश्रित आशा भरे इंतजार का
रंचमात्र भी अनुभव नहीं कर सकते।

क्योंकि माँ बनने के चक्र का
हिस्सा जो कभी न बन सकते,
तब वो भला माँ के कर्ज से 
मुक्त कहां कैसे हो सकते ?
 
                              ● सुधीर श्रीवास्तव


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