साहित्य चक्र

16 May 2021

इंसाफ


काल कहीं दूर नहीं है
आसपास ही घूम रहा है,
देख रहा है
सबकी भावनाओं को,
परख रहा है सब की
डगमगाती आस्थाओं को,
देख रहा है
मानव से दानव बने
इंसान की चलाकियों को।
काल झांक रहा है
खिड़कियों से दरवाजों से
उसी तरह
जिस तरह तुम झांकते हो
दूसरों की बहू बेटियों को।
बस फर्क इतना है
काल झांक रहा है
तुम्हारे किए गए गुनाहों को।
और तुम आज भी छिपा रहें हो
अपनी गंदी निगाहों को।

                                   राजीव डोगरा 'विमल'



No comments:

Post a Comment