साहित्य चक्र

14 May 2021

वो चश्मे वाली लड़की




वो चश्मे वाली लड़की
मेरे पहले प्यार का प्रतिबिंब बनी।
वो नाबालिग उम्र 
वो नासमझ सोच
वो उम्र का अल्हड़ पन
धीरे-धीरे वो प्रेम का 
मजबूत स्तंभ बनी।
वो बेखबर अंजान सी ,
मेरी पाँच टाइम की नमाज़ बनती गई
मंदिर की घंटियों जैसी
उसकी आवाज ,
 मेरे कानों में गूंजती रही।

वो चश्मे वाली लड़की
वक्त के साथ मुझसे दूर होती गई।
और मैं उसका , उसी राह पर
 इंतजार करता रहा।
आहिस्ता आहिस्ता उसके 
मोहपाश में जकड़ता  हुआ। 
उसके विषाद की,
 विरह वेदना में जलता गया।

वो चश्मे वाली लड़की
अब चश्मा नहीं लगाती
वो अब अपरिचित की तरह
 नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाती है।
मैं अब उसके इस रवैये से 
विचलित नहीं होता
मैं जानता हूं
उसके मन में कभी 
प्रेम के अंकुर फूटे ही नहीं।

वो चश्मे वाली लड़की
दुल्हन बन विदा हो गई ।
अपने पिया के साथ।
वो मेरा पहला प्यार 
वो ही आखरी प्यार रहेगी
जिंदगी भर वह मेरे दिल में
 धुंधली यादों के साथ 
सदा जिंदा रहेगी ।
मैं कभी उसे अपने दिल में 
दफन नहीं होने दूंगा।
मैंने प्रेम किया है उससे
कभी इबादत में भी
उसकी चाह नहीं की मैंने।

वो चश्मे वाली लड़की
सदा पहला प्यार बनकर 
मेरे साथ रहेगी।

                                   कमल राठौर साहिल 



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