सत्ता के खेल - खेला में
कोई फर्क नहीं पड़ता
हम मरे या तड़पते जीयें
हम हथियार हैं, और रहेंगे
वक्त - बेवक्त इस्तेमाल होना
हमारी मजबूरी भी, बेकूफी भी
सत्ता को तर्क - सवाल पसंद नहीं
सत्ता को केवल अंधभक्त भाते
दल कोई भी हो सोच एक ही होता
गिद्ध मांस ही खाता, दूध नहीं पीता।
राजेश देशप्रेमी
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