पराये घर जाना है तुझे
रोटियां ज़रा ठीक से
बनाना सीख ले
कुछ सिलाई करना
कुछ बुनाई करना
कुछ खोकर पाना सीख ले
तुझको हर रस्म निभानी है
बेटी के जीवन दो कहानी है
बाबुल का घर आंगन तो
दो दिन का है बसेरा
सुसराल ही होगा लाडो
मायका जैसा घर तेरा
आज नही तो कल सही
एक दिन बेटी को जाना है
अनजान लोगों को अपना समझ
रिश्तों की डोर में बांध अपनाना है
माँ जैसी होगी सास कभी कभी थोड़ा डांटेगी
लेकिन सच में लाडो तेरा दुख सुख भी बांटेगी
बहन जैसी होगी ननद
जो तुझ पर हक जतायेगी
तुझे हसी मजाक कर वो भी
खूब हसायेगी
पिता जैसा होगा ससूर
उसके सम्मान का मान रखना
भाई जैसा होगा देवर
उसका बेटे तुल्य ध्यान रखना
बेटी जीवन की कठिन डगर पर
घबराना नहीं
जीवनसाथी का हाथ थाम चलना
डगमगाना नहीं
विवाह के बाद हर बेटी का घर
ही सुसराल है
दो परिवार को रोशन करती है बेटी
यही तो कमाल है
माँ कभी चुभती थी तेरी ये बातें
आज याद आती है तेरी ये बातें
तू कितनी भोली थी
सच में तू सच्ची थी
मेरी माँ सबसे अच्छी थी
आरती शर्मा ( आरू)
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