साहित्य चक्र

16 May 2021

माँ की सीख



पराये घर जाना है तुझे 
रोटियां ज़रा ठीक से
 बनाना सीख ले
कुछ सिलाई करना 
कुछ बुनाई करना
कुछ खोकर पाना सीख ले
तुझको हर रस्म निभानी है
बेटी के जीवन दो कहानी है
बाबुल का घर आंगन तो 
दो दिन का है बसेरा
 सुसराल ही होगा लाडो 
मायका जैसा घर तेरा 
आज नही तो कल सही 
एक दिन बेटी को जाना है 
अनजान लोगों को अपना समझ
रिश्तों की डोर में बांध अपनाना है
माँ जैसी होगी सास कभी कभी  थोड़ा डांटेगी
लेकिन सच में लाडो तेरा दुख सुख भी बांटेगी 
बहन जैसी होगी ननद
जो तुझ पर हक जतायेगी
तुझे हसी मजाक कर वो भी 
खूब हसायेगी  
पिता जैसा होगा ससूर 
उसके सम्मान का मान रखना
भाई जैसा होगा देवर 
उसका बेटे तुल्य ध्यान रखना
बेटी जीवन की कठिन डगर पर 
घबराना नहीं
जीवनसाथी का हाथ थाम चलना
डगमगाना नहीं
विवाह के बाद हर बेटी का घर
ही सुसराल है
दो परिवार को रोशन करती है बेटी
यही तो कमाल है
माँ कभी चुभती थी तेरी ये बातें 
आज याद आती है तेरी ये बातें 
तू कितनी भोली थी 
सच में तू सच्ची थी 
मेरी माँ सबसे अच्छी थी 

                                                  आरती शर्मा ( आरू)

 

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