साहित्य चक्र

09 May 2021

मां से है दुनिया



प्यार से रोज 
उससे बतियाओ,
कुछ उसकी सुनो
कुछ अपनी सुनाओ,

दर्द हो जो सिर में
तो हौले से सिर दबाओ,
आजकल के हिसाब से
सही ना हो चाहे
पर कभी-कभी उसकी
बेतुकी बातें भी 
मान जाओ,

डांटे जो कभी 
तो ना मुंह फुलाओ,
बचपन की तरह
उसके गले लिपट
गुस्सा ठंडा करवाओ,

उसकी वजह से है
हमारी हस्ती
रोज खुद को यह
याद दिलाओ,
'मां' से है हमारी दुनिया
एक दिन ही क्यों?
हर दिन उसके
नाम पर मनाओ।

                                जितेन्द्र 'कबीर'


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