माना कि' वक़्त ने, हमारे रास्ते; अलग कर दीए।
हमारे तकदीर ने, हमें क़दम क़दम पे धोखे दीए।
कहीं ख़्वाबों में, हम फिर कभी; टकरा ना जाए।
सच कहूं; मैं तेरी यादों सो भी किनारा करता हूं।
क्यों जो, तेरी आंखो में आंसू देखने से डरता हूं।
मैं दिल से, आज भी; तुझसे; मुहब्बत करता हूं।
बस इसी डर से डरकर, तेरे ख़त भी जला दिए।
पर, तेरे ख़तों की यादों में; मैंने दिए; जला दिए।
डरता था कहीं' दियों की लौ मद्धम हो ना जाए।
सो आजकल मैं' तेरी यादों में, लिखता रहता हूं।
क़लम के सहारे, रोज़ तारे; गिनना सीख रहा हूं।
आए दिन, अपनी मुहब्बत पे' गीत लिख रहा हूं।
अमनदीप सिंह रखड़ा
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