साहित्य चक्र

09 May 2021

“माँ”



ममतामयी माँ करुणामयी,
माँ है…. ईश्वर स्वरूपा।
अंत: करण में बसने वाली,
सदैव बरसाए सब पर कृपा।।

स्नेह से…… परिपूर्ण माँ,
अन्नपूर्णा है और शारदा भी।
आ जाए विपदा जब बच्चों पर,
बन जाती माँ…… दुर्गा भी।।

शीर्षस्थ स्थान जग में माँ का,
उद्धरण नहीं माँ सा दूजा।
भर उत्साह करती काम अपने,
सब की खुशी ही माँ की पूजा।।

मुख में सदैव मधुरता लिए,
माँ ही… सच्ची सहचर है।
उपस्थिति हो माँ की जहाँ,
देवालय बन जाता वो घर है।।

वात्सल्य की प्रतिमूर्ति माँ सब को,
धागे में मोतियों सी पिरोए रखती है।
फलता फूलता है परिवार उनका,
जिनके हृदय में माँ बसती है।।

‘कला भारद्वाज’


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