साहित्य चक्र

14 May 2021

तीन मुक्तक




उठो प्रतीक्षा करती तेरी कह है
जीवन जीना तेरी सुंदर चाह है

भय संकट से कब तुम हो घबराते
आंधी तुफानों की क्या प्रवाह है

मानव अपनी शक्ति को पहचान ले
चाँद पे पहुँच गया है मानव  मान ले

वह क्या जो तेरी शक्ति से है बाहर
अंतर मन की वृत्तियों जो जान ले

हर अँधियारा कहता जदमाग होने को
दुर्जन का  अंतर्मन कहता रोने को

उठ रे मानव ज्योतित कर जग-जान-मन
मनुजता के बीज पड़े हैं बोने को

                                    डा. केवलकृष्ण पाठक

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