साहित्य चक्र

23 May 2021

कोरोना- एक सबक एक सीख




कोरोना हमको डराता बहुत है, 
जिंदगी की जंग में कमजोर को हराता बहुत है।। 

शुगर, बीपी, बुढ़ापा, निमोनिया, कोसाथ लेकर लगाता है दांव।
अगर चूक गए तो फेफड़ों में करता है घाव।।
सर्दी, जुकाम, खांसी, बुखार के साथ सताता बहुत है।।  
 कोरोना हमको डराता...।।1।।   
   

'डर गया सो मर गया' वरना कोरोना मारता कहाँ है।
आपदा में अवसर, विपत्ति में निदान, मनुष्य तलाशता कहाँ है।
मृग मारीचिका बनके मनुष्य भटकता कहाँ कहाँ है।
जबकि विज्ञान का ज्ञान और मनोबल का भान जताता बहुत है। 
 कोरोना हमको डराता...।।2।।


युद्व संख्याबल से नही आत्मबल से जीते जाते हैं।
रामायण और महाभारत हमको यही सिखाते हैं।
कोरोना एक अदृश्य बीमारी है।
जिस पर मन और आत्मा भारी है।
"मन के हारे हार है मन के जीते जीत" इसकी दवा न्यारी है। 
मनोबल और आत्मबल रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता बहुत है। 
कोरोना हमको डराता...।।3।।


पर्यावरण सुधार, रहन सहन नियमित दिनचर्या।
योग ध्यान व्यायाम है कोरोना की पाठ्यचर्या।
उक्त पाठ्यक्रम पूरा करके हमें युद्ध पर जाना है। 
सामाजिक दूरी,सेनेटाइजर, मास्क लगाकर लड़ते जाना है।

 वैज्ञानिक तकनीक, दवा और टीका से बंधी है आस।
कोरोना को अब हराएंगे मन मे है विश्वास।
 कोरोना सामाजिक सरोकार बन, 
आपदा में अवसर तलाशता बहुत है।         
कोरोना हमको सिखाता बहुत है।।
कोरोना हमको...।।4।।


                                            मुल्क मंजरी


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