साहित्य चक्र

09 May 2021

माँ...कौन सा शब्द



एक शब्द, हाँ बस एक ही शब्द
विलीन सम्पूर्ण ब्रम्हांड.....
रत्ती से शब्द की माया विशाल...
सहेज ना सका कोई भी सम्पूर्ण
रही हर तुलना हर कलम अपूर्ण
माँ अहसास ही है सबसे परिपूर्ण
जो जीवन को करता है पूर्ण..
तुम तो तुम सी ही हो माँ...
खुद तुम्हारी रचना है संसार...
कहो कौन से शब्दों में ढाल दूँ
माँ तुमको..कि
भावों कि गरिमा को दे सकूँ विराम...
माँ की अग्नि तपस्या की आहूति
उसके हर पल की तिलांजली...
स्नेह की असीमित छत्रछाया...
कौन सा नाम दूँ जो लगे तेरी
प्यार की अनमोल सी शीतल छाया...
तुम्हारा आशीष, स्नेह को जो समेट
काश......होता
तुमसा कोई शब्द विशेष....
कौन सी प्रतिलिपि में कोई भी
भला तुम को कब पूरा लिख पाया
माँ...कौन सा शब्द
कर असीमित को सीमित
शब्दों में तुमसा भला ढल पाया
माँ...सुनो
तुम्हारी सम्पूर्णता सिर्फ तुम ही हो....
हाँ सच में माँ
तुम जैसी तो बस तुम ही हो.....

पूजा नबीरा


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