साहित्य चक्र

19 May 2021

रेत सी ज़िंदगी




रेत - सी  ज़िंदगी  मुट्ठियों  में  भरी,
कब फिसल जाय इसका भरोसा नहीं।

खुल  न जाएँ किसी हाल में मुट्ठियाँ,
बस  यही  डर  हमें जीने देता नहीं।

टूट  जाए  नहीं  साँस  की  श्रृंखला,
ढह  न  जाए  अटारी  बनी रेत की।

रेत    है    ज़िंदगी, ज़िदगी   रेत  है,
सोचने  में  कभी  रात  सोया  नहीं।

भाईचारा  अगर  साथ  कायम  रहे,
गर्मियों  में  अगर  रेत  में  हो  नमी।

हौसला  हो  अवध  नेह के साथ में,
रेत  की  ज़िंदगी में भी धोखा नहीं।

                                       डॉ अवधेश कुमार अवध

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