साहित्य चक्र

29 May 2021

होश में कहाँ रह पाते हो




कभी खुशी तो कभी ग़म में 
दोस्त  अपना बतलाते हो 
नशे  की जब लत लग जाए 
तो होश में कहा रह पाते हो।
 
जिस माँ  ने था जन्म दिया 
उस पर ही चिल्लाते हो 
ऐसा जीवन दिया ही क्यों 
उसको  ही जतलाते हो
उसके हर दर्द पर 
तुम और मिर्च लगाते हो 
नशे की जब लत लग जाए 
तो होश में कहा रह पाते हो।

जिस पिता ने था 
कभी चलना सिखाया 
उसी का सम्मान चुराते हो 
बीच सड़क में कर तमाशा 
उस को शर्मिंदा कर जाते हो 
नशे की जब लत लग जाए 
तो होश मे कहा रह पाते हो 

जिन भाई बहनों ने था
तुमको कभी प्यार सिखाया 
उनको ही उनकी औक़ात 
हरपल दिखलाते हो 
नशे की जब लत लग जाए 
तो होश में कहा रह पाते हो ।

जिस पत्नी ने प्रेम दिखाया
उसका कहा मान रख पाते हो 
घर की जागीर समझ कर
हर दोष उस पर लगाते हो 
नशे की जब लत लग जाए 
तो होश में कहा रह पाते हो ।

अरे बच्चों को क्या 
सीख दोगे तुम 
जब खुद ही समझ नहीं पाते हो 
अरे !नशे में ही नाश निहित है
इतनी सी बात, समझ नहीं पाते हो 
नशा कभी भी दोस्त नहीं ,
ये सारे रिश्ते ले लेगा 
ऐसे दोस्त का क्या है करना 
जो जीवन नर्क बना देगा ।


                                  गीता पांडे 


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