मरते तो थे हर दिन लोग
पर इस तरह मरते कभी न देखा
दफन तो हर दिन लोग होते थे
पर इतना नहीं की जमीन ही कम पड़ जाऐ
गंगा किनारे चीताऐं जलती तो थी
पर इतना नहीं की शाम की लाली बन जाऐ
युध्द में लड़ते हुऐ फौजी को देखा है
पर आज करोना से लड़ते हुऐ इंसानों को देखा
प्रकृति आपदा तो हर वर्ष आती थी
पर इस बार महामारी आई है
बेबस तन्हाई में रोता हुआ
हर कोई पुछता है श्ष्टी के दाता से
क्या गलती कर बैठे है हम
अपनों से ही 2 (दो) गज दूरी बनाना पड़ रहा है
क्षमा करो प्रकृति हम सब को
करोना का लहर कम करो
अंत में बस इतना ही ....
𝙎𝙩𝙖𝙮 𝙎𝙖𝙛𝙚 𝙎𝙩𝙖𝙮 𝙃𝙤𝙢𝙚
मणिकान्त
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