अरी सुनो तो गोपियों, मैं हूँ भोला बाल
नहीं मुझे है ये पता, माखन लगि है गाल
माखन चोरी कर रहे, भर कर दोनों हाथ
डालें अपने पेट में, सारे खावें साथ
चुनरी उड़ उड़ कर करे, तपते पथ पर छाँव
मोहन चाहे खेल ले, जले न उसके पाँव
गोपालक गोपाल मैं, रहूँ चराता गाय
समझे सब हैं बावरा, पार न कोई पाऐ
छेड़ूँ जब अपनी कभी, मैं मुरली की तान
आ जाए राधा खिची, सुने लगाए कान
मीरा भजती नाम को, राधा रचती रास
दोनों को गोपाल से, है मिलने की आस
ये धन वैभव सब यहीं, रह जाएगा मीत
मैं माँगू ये चाकरी, जुड़े प्रभु से प्रीत
तेरे अनेक नाम हैं, कैसे जानूं भेद
कब कैसे क्या नाम लूँ, मिरी समझ में छेद
चाहूँ तेरी चाकरी, रहे यही बस काम
फिरूँ महकती शाम सी, जप लूँ राधा नाम
भजो कृष्ण के नाम को, देगा तुमको तार
भजने वाले सब हुए, भव सागर से पार
आशु शर्मा
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