साहित्य चक्र

07 May 2021

व्यवस्था समर्थक बनिए



व्यवस्था पर कोई भी आरोप
लगाने से पहले
सौ बार सोच लीजिए
( चाहे वो सही क्यों ना हों )
क्योंकि आपके लगाए
हर आरोप का प्रत्यारोप
अब आपका देशद्रोही होना है।

व्यवस्था पर कोई भी सवाल
उठाने से पहले
सौ बार सोच लीजिए
( चाहे वो जायज ही क्यों ना हो )
क्योंकि आपके उठाए
हर सवाल का जवाब
अब आपकी देशभक्ति पर संदेह है।

व्यवस्था को कोई भी नसीहत
देने से पहले
सौ बार सोच लीजिए
( चाहे वो जरूरी ही क्यों ना हो )
क्योंकि आपकी दी गई
हर नसीहत का प्रतिकार
अब आपकी बुद्धिमत्ता पर प्रश्न है।

व्यवस्था से कोई भी उम्मीद
लगाने से पहले
सौ बार सोच लीजिए
( चाहे वो आपकी मजबूरी ही क्यों ना हो )
क्योंकि आपकी लगाई
हर उम्मीद का परिणाम
अब आपका हताश-निराश होना है।

व्यवस्था की नजर में रहना है
तो उसके सही-गलत निर्णयों का
अंधा होकर प्रचार करिए
( चाहे वो झूठा ही क्यों ना हो )
क्योंकि आपके किए
हर प्रचार का ईनाम
अब आपका महान देशभक्त होना है।

                                जितेन्द्र 'कबीर'



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