हे राष्ट्र के प्रहरी तुमसे , दिव्यता भी दिव्य है
सुर्य सम तेज पुंज भाल पे ,रूप अद्भुत भव्य है
हिमाद्रि चोटियों पर काल सम, लाडलो तुम हो खड़े
भुकंप आंधियों तूफान से, वीर जो तुम हो लड़े
लौटा संकट कदम चूम कर ,यूँ भय से वो घर को
आता पसीना रण में सदा, लाल आपसे डर को
कांपता रिपु रुद्र रूप देख, भारती के लाल को
चूमती मात भारती यहाँ, वीरता के भाल को
है कोटि कोटि प्रणम्य सदा, लाडलो के त्याग को
आलौकित है तुमसे ही ये, तेज धर्म व वीरता
समाहित है वीर तुममें ये, प्रेणता औ धीरता
टूट पड़ते हो आप रिपु पे, भैरव के समान यूँ
अक्षम्य अपराध पर देते न, तुम ये क्षमादान यूँ
क्षण में तोड़ते हो तुम सिंह, काल के अभिमान को
छीनते हो गर्दन मरोड़े , अरी के तुम प्रान को
जान रख हथेली पर तुम यूँ, कूदे हो तुम रण में
स्वाभिमान ले हृदय में सदा, जिये हो समर्पण में
कोटि कोटि है प्रणम्य वीर, भारती अनुराग को
कोटि कोटि है प्रणम्य सदा,लाडलो के त्याग को
लेकिन कुछ जयचंदो से जो , छलता रहा देश ये
गंदा कर रहे कुछ सुअर जो, भारती परिवेश ये
विष घोलते कटु बोलते हैं , घोंपें वो खंजर को
मौन हो देखता है राष्ट्र, गरल युक्त मंजर को
फिर भी गूंजता स्वर अखंड,भारत स्वाभिमान का
आन बान शान का और ये, वीरता सम्मान का
जय हिंद वंदेमातरम सुर, जिंदाबाद भारती
आत्मपुंज की आज सभी तुम, उतारो जी आरती
कोटि कोटि है प्रणम्य सदा ,बसंती अमर राग को
कोटि कोटि है प्रणम्य सदा,लाडलो के त्याग को
क्या खबर थी लौट फिर न आओगे तुम गांव को
तोड़ के यारी छोड़ चला गया पीपल की छांव को
माँ की लोरियां को भूल कर किस देश में चला गया
बूढ़े बाप की आश तोड़ तू रूठ कर चला गया
माँ की आंखों का तारा टूटा टूटी बाप की लाठियां
सूनी कलाई बहना निहारती बिलखती है राखियाँ
जाग जाओ अब लाडलो तुमको ये ममता पुकारती
बुढी़ दादी की आखें तुझको अब बार बार दुलारती
जाग जाओ पापा तुम अब मैला दिखाने चलो
टूटा खिलौना मेरा पुराना अब नया दिलाने चलो
कैसा काल निष्ठुर जो काल सम लाल को सुला गया
मासूम मुन्ना का सवाल सारे गांव को रुला दिया
मुन्नी भी अपनी बात कहते कहते ही रो गयी
जैसे मानों पत्थरों में वो वीरता को बो गयी
वीर की बेटी में हूँ अब झांसी की रानी मैं बनूँ
बदला में लूंगी कायरों से काल सम मैं ठनू
कोटि कोटि है प्रणम्य सदा बेटी हृदय आग को
पथराई की आंखों का नीर पाषाण को है चीरता
मांग का संदूर बिंदिया भी बिखर रखती है धीरता
टूट कर कंगन पायल चुडियां भी गा रही है वीरता
खामोश लवों की चीख में अचानक आयी पीरता
आज गूंजती है चीख जैसे चीर वक्ष ब्रह्माण्ड के
दुंगी चिता को में अगन कहती वो अब दहाड़ के
कांधा दिया तो जैसे लगा संसार का भार ले चली
जयकार हो रही जब वो मुखाग्नि को देने चली
देख कर दृश्य ये वक्त संग ये देश भी है रो गया
दशों दिशाओं रो गयी और ये परिवेश भी है रो गया
कोटि कोटि है प्रणम्य सदा, उस दिव्य सुहाग को
भानु शर्मा रंज
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