साहित्य चक्र

14 May 2021

प्रलय



सुधरो मानव सुधरो
अब भी प्रलय बाकी है,
गूँज रहा है जो नाद
महाकाली का,
उसमें काल का अब भी
नृत्य करना बाकी है।
बहुत तोड़ी है अहम में
लोगो की नसें,
अभी काल के द्वारा
तुम्हें तोड़ना बाकी है।
समझते थे तुमको
सब मानव,
मगर बनकर रह गए
तुम एक दानव।
तभी रण चंडी का हुंकार भर
संहार करना अभी बाकी है।

                              राजीव डोगरा 'विमल'



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