साहित्य चक्र

02 May 2021

" चल मुसाफिर चल "


चल मुसाफिर चल भले ही रास्ता कठिन,
चल मुसाफिर चल कि होगी जीत एक दिन।

मुश्किल चाहे जितनी भी आ जाए तो,
तेरी हिम्मत से भी थर्रा जाए वो,
अंधेरे से निर्भीक हो लड़ना सीखो तुम,
नन्हे से जुगुनू सा चमकना सीखो तुम।

चूम लेगी तेरे कदमों को मंजिल एक दिन,
चल मुसाफिर चल भले ही रास्ता कठिन।

शीतल छाया में भी तुम इतराना ना,
कड़ी धूप हो चाहे तुम घबराना ना।

जीवन की  बाधाओं से ऊपर उठकर,
आशा और विश्वास के दीप जलाना तुम।

हार कर भी जीत लोगे बाज़ी एक दिन,
चल मुसाफिर चल भले ही रास्ता कठिन।


                                        प्रियदर्शिनी तिवारी


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