साहित्य चक्र

29 May 2021

हां.... हां.... मुझे प्यार हो गया है



    संजना की शादी की उम्र बीती जा रही थी। घरवालों के लाख समझाने पर भी शादी के लिए राज़ी नहीं हो रही थी। माता-पिता दोनों वृद्ध हो चुके थे। उन्हें संजना के भविष्य की चिंता खाए जा रही थी।अब घर में उसके भाई-भाभी ही थे जो उसे समझा सकते थे।





     एक दिन एक अच्छे घराने से संजना के लिए शादी का रिश्ता आया। बड़ी भाभी ने उसे खूब समझाया लेकिन शादी और पुरुष के बारे में उसके विचार दृढ़ हो गये थे। उसने अपनी बड़ी भाभी से कहा-"शादी और प्यार सब बकवास है। मैं सामान्य घरेलू स्त्री की तरह किसी पुरुष के आधिपत्य को स्वीकार नहीं कर सकूंगी। मैं शादी करके जिंदगीभर किसी पुरुष के साथ बंधन में नहीं बंध सकती। मुझे कभी किसी से प्यार हो ही नहीं सकता।"

     वृद्ध माता-पिता ने उसे खूब समझाया कि ऐसे अच्छे रिश्ते बार-बार नहीं आते। बड़े भाई ने कहा-"अरे!पगली, हां कह दे। भविष्य का विचार कर। माता-पिता जिंदगीभर नहीं बैठे रहेंगे। जवानी तो अकेले बीत जाएगी लेकिन पिछली जिंदगी में अकेली कैसे रहेगी?" बड़ी भाभी ने भी कहा-"हमारे समाज में अकेली स्त्री के लिए जिंदगी बिताना बहुत दुष्कर है।"

       आखिर माता-पिता और भाई-भाभी ने जबरदस्ती करके उसे शादी के लिए मनवा लिया। धूमधाम से शादी हुई। संजना घर से बिदा हुई। माता-पिता और भाई-भाभी को चिंता तो थी कि वह ससुराल में टिक जाए तो अच्छा।

         संजना का पति सुजय खूब पढ़ा-लिखा और समझदार था। उसने संजना को गृहलक्ष्मी के रूप में खूब आदर दिया और अनहद प्यार किया।

        शादी के एक महीने बाद वह अपने मायके आई। सुबह आई और शाम होने पर अपने ससुराल जाने के लिए तैयार हो गई। बड़ी भाभी ने कहा-"अरे! पगली,पहली बार आई हो। अब पूरी जिंदगी वहीं पर बितानी है। दो-तीन दिन बाद जाना।"संजना ने कहा-"भाभी!ये मुझे क्या हो गया है? मैं निरंतर उनके ख्यालों में खोई रहती हूं।पूरा दिन उनकी देखभाल के बारे में सोचती रहती हूं।उनका पसंदीदा खाना बनाना और घर के काम-काज में समय कहां बीत जाता है इसका पता ही नहीं चलता।"भाभी ने कहा-"अरे! पगली,यही तो प्यार है।"

          संजना ने शरमाते हुए कहा-"हां.... हां.... मुझे प्यार हो गया है।"



                                                        समीर उपाध्याय


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