साहित्य चक्र

08 May 2021

बीते हुए कल


   
अरे! बीते हुए कल
बेफिक्र होकर मत घूम।

तुमसे अपने हर दर्द का
हिसाब लूंगा ।

अरे!बीते हुए कल
बेफिक्र होकर मत हंस
तुमसे अपने हर आंसू का
हिसाब लूंगा।

अरे!बीते हुए कल
बेफिक्र होकर मत सो
तुमसे अपनी हर नींद का
हिसाब लूंगा।

अरे!बीते हुए कल
बेफिक्र होकर अपनी
झूठी शान पर मत इतरा,
तुमसे अपने हर अपमान का
हिसाब लूंगा।

                                  अमित डोगरा


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