साहित्य चक्र

14 May 2021

तुम नही आये



देखकर रस्ता तेरा आँखें मेरी पथरा गयीं,
तुम मगर फिर भी नही आये..!!
ये जुदाई देह को तिल तिल हमारे खा गयीं,
तुम मगर फिर भी नही आये..!!

राह वो जिसपर चले थे साथ हम दोनों कभी,
पूछती हैं आज मुझसे, क्या बताऊँ तुम कहो।
हर घड़ी जब जब गयी तुम होंठ ने चाहा यही,
बोल दे यों छोड़ मत दो साथ जीवन भर रहो।

देख दरिया अश्क़ का चट्टान भी भहरा गयी,
तुम मगर फिर भी नही आये..!
देखकर रस्ता तेरा.........!!१!!

दिन तुम्हारे बिन गुजर जाता हमारा है मगर,
रात काली अब तुम्हारी बिन नही कटती मेरी।
डर ये लगता है कहीं कुछ कर न बैठूँ मैं गलत,
टूट न जाए तुम्हारे वायदे की हथकड़ी।
इक कमी तेरी कहर मुझपर बहुत ही ढ़ा गयी,
तुम मगर फिर भी नही आये..!
देखकर रस्ता तेरा.........!!२!!

दो नयन में इक तेरी तस्वीर को दिल है सम्हाले,
जब जमी कुछ धूल अश्कों से उन्हें धोया सजाया।
तुम यकीनन आओगी इस आस में विश्वास लेकर,
रोज ही उनको बुहारा रोज ही रस्ता सजाया।

इंतजारी में तेरे हर पल हमारी जां गयी,
तुम मगर फिर भी नही आये..!
देखकर रस्ता तेरा.........!!३!!


                                     आशुतोष तिवारी 'आशू'


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