भारत भू पर आया संकट
कुछ दिन में हट जाएगा
कैसा भी ये कठिन समय हो
कट कट कर कट जाएगा
रोज समय पर खाना सोना
रोज समय पर जग जाना
दिनभर की खबरों से लड़ना
शाम को छत पर भग जाना
सुइयों की इस कदमताल में
हर कोहरा छंट जाएगा
कैसा भी ये कठिन समय हो
रोज समय के मस्टर पर हम
छाप अँगूठा देते हैं
दिनभर की यूँ पका दिहाड़ी
नाम राम का लेते हैं
एक पाठ को पढ़ते जाओ
शनैः शनैः रट जाएगा
कैसा भी ये कठिन समय हो
नहीं रहा अब भय शेष है
अब तो केवल जय शेष है
सधी हुई जीवन की सरगम
मधुर गान का समय शेष है
सारे मिलकर बोझ उठाओ
हर बोझा बंट जाएगा
कैसा भी ये कठिन समय हो
कट कट कर कट जाएगा
अमित कुमार खरे
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