साहित्य चक्र

02 May 2021

समय




इतना भय 

इतना डर

क्यूँ मगर?

इतनी चिंता 

इतनी फ़िकर

क्यूँ मगर?

बुरा वक़्त है

टल जाएगा 

अच्छा समय 

कल ज़रूर आएगा

समय का पहिया 

कभी रुकता नहीं 

अच्छा या बुरा 

कभी टिकता नहीं 

तू कोशिश तो कर 

बन निर्भय बन निडर 

समय को फेर बदल 

हो अभय हो मुखर 

रात कितनी भी 

गहरी हो अंधेरी हो 

भोर का उजाला 

तो निश्चित है


                             रेखा ड्रोलिया 



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