साहित्य चक्र

08 May 2021

मेरी माँ


घुटनों से रेंगते-रेंगते
कब पैरों पर खड़ी हुई,
जाने कब बड़ी हुई माँ।

काला टीका दूध मलाई
आज भी सब कुछ
तेरा वैसा ही है माँ।

माँ ही माँ हर दिखती जगह
कैसा प्यारा प्यार तेरा माँ।

सीधी-साधी,भोली-भाली,
सबसे अच्छी मेरी माँ हूँ।

कितनी भी बड़ी हो जाऊं
मैं आज भी तेरी बच्ची हूँ माँ।

                                       शिनम धीमान



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