साहित्य चक्र

15 May 2021

प्रकृति संरक्षण


देखो आज कितना बुरा समय है आया 
चारों ओर दिख रही है मृत्यु की छाया।

आदमी हर पल हर तरह से मजबूर है,
ऑक्सीजन बनी जैसे छाया खजूर है।

हर तरफ ऑक्सीजन की मांग हो रही,
अस्पतालों में जिंदगी मौत में खो रही।

मानव अब भी समझ जा अपनी गलती,
झूठे विकास से ही बंजर हुई यह धरती।

साफ कर जंगलों को तूने महल हैं बनाए,
स्वकृत्य से धरा को खून के आंसू रुलाए।

धन की वासना में मानवता की बलि चढ़ाई,
माया के लिए तूने संस्कारों की होली जलाई।

तुच्छ जीव ने विकास का दर्पण दिखा दिया,
बड़े-बड़े देशों को मृत्यु के आगे झुका दिया।

अब प्रकृति के संरक्षण का बीणा उठाओ,
भविष्य की आपदाओं से जग को बचाओ।।

                                        ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम


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