देखो आज कितना बुरा समय है आया
चारों ओर दिख रही है मृत्यु की छाया।
आदमी हर पल हर तरह से मजबूर है,
ऑक्सीजन बनी जैसे छाया खजूर है।
हर तरफ ऑक्सीजन की मांग हो रही,
अस्पतालों में जिंदगी मौत में खो रही।
मानव अब भी समझ जा अपनी गलती,
झूठे विकास से ही बंजर हुई यह धरती।
साफ कर जंगलों को तूने महल हैं बनाए,
स्वकृत्य से धरा को खून के आंसू रुलाए।
धन की वासना में मानवता की बलि चढ़ाई,
माया के लिए तूने संस्कारों की होली जलाई।
तुच्छ जीव ने विकास का दर्पण दिखा दिया,
बड़े-बड़े देशों को मृत्यु के आगे झुका दिया।
अब प्रकृति के संरक्षण का बीणा उठाओ,
भविष्य की आपदाओं से जग को बचाओ।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
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