हमारा शरीर पंच तत्वों यानी जल, आकाश, वायु, अग्नि और पृथ्वी से मिलकर बना है। जब किसी की मृत्यु होती है, तो शरीर इन्हीं पंचतत्वों में विलीन हो जाता है और आत्मा अदृश्य रूप में मौजूद रहती है। यदि मर चुके व्यक्ति ने जिंदगी भर अच्छे कर्म किए हैं, तो वैदिक ग्रंथों के अनुसार उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। तब आत्मा जन्म मरण के चक्र से मुक्त होकर आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती है।
श्रीमद्भागवत् गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि ‘आत्मा कभी नहीं मरती’। आत्मा अमर है, आत्मा ना जन्म लेती है ना मरती है। आत्मा एक ऐसी ऊर्जा है, जो एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश करती है और समय आने पर उस शरीर को छोड़कर चली जाती है और तब तक किसी नए शरीर में प्रवेश नहीं करती जब तक ईश्वरीय आदेश ना हो।
आत्मा का कोई धर्म नहीं, ना ही वह पुरुष है और न ही वह स्त्री, वह तो परमात्मा का अंश मात्र है। परमात्मा न हिंदू है, ना मुस्लिम है, ना सिख, ना ईसाई है ना ही यहुदी और ना ही बौद्ध, परमात्मा से सारा संसार जन्म लेता है। आत्मा एक ऐसी जीवन-शक्ति है, जिसके कारण हमारा शरीर जिंदा रहता है। यह एक दैवीय शक्ति है, यह कोई व्यक्ति नहीं है। इस जीवन-शक्ति के बिना हमारे प्राण छूट जाते हैं और हम मिट्टी में फिर मिल जाते हैं। जब शरीर से आत्मा या जीवन-शक्ति निकलती है, तो शरीर मर जाता है और वहीं लौट जाता है, जहां से वह निकला था यानी पृथ्वी के पंचतत्वों में। उसी तरह जीवन-शक्ति भी वहीं लौट जाती है, जहां से वह आई थी यानी परमात्मा के पास।
महाभारत युद्ध के पहले जब अर्जुन हाथ जोड़कर श्रीकृष्ण से कहते हैं कि, ‘मैं अपने सामने खड़े पितामह, गुरु, चाचा, ताऊ, भाई को नहीं मारूंगा। तब अर्जुन को यूं शोक करते देख कर श्रीकृष्ण ने समझाया कि इस संसार में कोई शोक करने योग्य नहीं है, क्योंकि यहां कोई मरता ही नहीं है। सभी आत्माएं हैं और आत्मा कभी नहीं मरती।
जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण से फिर पूछा, ‘वह कौन है जो अमर आत्मा और नश्वर शरीर का बार-बार संयोग करवाता है?’ तब श्रीकृष्ण बोले, ‘एक और शरीर है, जो आत्मा के लिए भीतर का वस्त्र है। वह है सूक्ष्म शरीर। उसे अंत:वस्त्र भी कह सकते हैं। वह शरीर एक प्रकार के विद्युत कणों से ही निर्मित है। वह मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से बना है। इसे ‘कारण शरीर’ या जीवात्माभी कहते हैं। यह शरीर पिछले जन्म से साथ आता है। स्थूल शरीर मिलता है माता-पिता से, सूक्ष्म शरीर मिलता है पूर्वजन्म से, लेकिन आत्मा तो सदा शाश्वत ही है। सूक्ष्म शरीर न हो, तो स्थूल शरीर ग्रहण नहीं किया जा सकता। सूक्ष्म शरीर छूटने का अर्थ है ‘मोक्ष’। सारी साधनाएं इस सूक्ष्म शरीर को छोड़ने के लिए, इससे मुक्ति के लिए ही की जाती हैं।’
आधुनिक समय में ऐसे कई प्रयोग किए गए, जिनसे यह पुष्टि हो सके कि आत्मा का अस्तित्व सचमुच है। ऐसा ही एक प्रयोग किया था फ्रांस के डॉक्टर हेनरी बारादुक ने उन्होंने एक विशेष कैमरा बनवाया और मृत्यु के बाद निकलने वाली आत्मा की फोटो लेने की तैयारी की। संयोग से एक बार उनका लड़का बहुत बीमार हुआ। उसके बचने के कोई लक्षण दिखाई न दिए तो इस वैज्ञानिक ने परीक्षण करने का मन बनाया। वैज्ञानिक ने इससे पहले अपनी पत्नी पर यह प्रयोग आजमाया था। लेकिन उस समय सिर्फ प्रकाश किरणों की ही पुष्टि वह कर पाए थे।
कैलीफोर्निया के वैज्ञानिक ने तो इस तरह का एक सार्वजनिक प्रदर्शन भी किया, जिसमें उन्होंने अखबार के रिपोर्टर को बुलाया। उन्होंने वहां साधारण कैमरों से कुछ रहस्यमय किरणों के चित्र लिए थे। इस प्रयोग के बाद अमूमन वैज्ञानिकों ने यह माना कि मनुष्य शरीर में कोई चैतन्य तत्व, कुछ रहस्यमय किरणें, कोई विलक्षण तत्व और प्रकाश है अवश्य पर उसका रहस्य वे नहीं जान पाए।
प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"
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