साहित्य चक्र

29 May 2021

मृत्यु अटल सत्य




मृत्यु अटल सत्य
दाह शरीर में से
शेष हड्डीयां और राख रहकर
हो जाती मानव मूर्ति विलिन
पंचतत्व में
मानव मृत्यु का
अनवरत चलते आ रहे क्रम से
क्षण भर आता वैराग्यता का बोध
जो समा जाता
हर एक स्मृति पटल पर।

मृत्यु के सच को
अच्छाई -भलाई के विचारों पर
मृत मानव के प्रति श्रद्धांजलि स्वरूप
चिंतन करते मानव
श्मशान के बाहर आते ही
छाई वैराग्यता को
श्मशान में उठे धुँए की तरह
कर जाते है विलिन।

कुछ समय तक
जिंदगी रुलाती रहती
किंतु नए मेहमान के आने पर
मिलान करती-खोजती
अपने एवं अपने पूर्वजो के
चेहरों की आकृति।

खुश हो जाती अब जिंदगी.
देखते -देखते
फिर से जिंदगी बूढ़ी हो जाती
मृत्यु का क्रम अनवरत
मानव मूर्ति फिर होने लगती विलिन।

क्षण भर की वैराग्यता
फिर से समा जाती
अस्थिर मन में
यही संकेत फिर से
दे जाता मृत्यु
अटल सत्य को।

                                 संजय वर्मा "दृष्टि"


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