याद आती है वो बचपन की यादें
वह अल्हड़ पन
वो किस्से कहानियों की रातें
वो दिनभर थक कर
चूर हो जाना
वो रात में परियो के सपनो में
खो जाना।
उम्र छोड़ आई,
बचपन की दहलीज ।
मगर आज भी दिल के
किसी कोने में
मेरा बचपन मुस्कुराता है।
अब वो बरसाते नहीं होती
अब घर के आंगन में
नींव की छांव नहीं होती।
वो अल्हड़ पन
अब इस उम्र में
नहीं झलकता।
अब पहले जैसी बंदिशें भी नही,
अब चेहरे की झुर्रियां,
उम्र का एहसास कराती है।
मगर मैं खुश हो जाता हूं
मेरे बचपन को याद करके
जब मेरे पुत्र के बचपन में
चुपके से मैं जी लेता हूं।
अपना बचपन।।
कमल राठौर साहिल
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