पालन करती माँ सदा, देती सबको ज्ञान।
माँ से बढ़कर कौन है, धरती पर भगवान।।
घर की महिमा जानती,घर बन जाता धाम।
माँ से होते हैं सभी,दुनिया के शुभ काम।।
सेवा का अवतार है,माता तेरे रूप।
लीला करती तू सदा,जैसे छाया धूप।।
मन से निकले ये सदा,मीठे मीठे गीत।
होती जब माँ सामने, खुश हो जाते मीत।।
रंग अनेकों देख के,अचरज हुआ अपार।
दुआ लगे माँ की यहाँ,सुखी बने संसार।।
माँ ही हरती है सदा,सारे जग की पीर।
माँ के चरणों मे झुके,राजा रंक फकीर।।
माता तेरे रूप की,बड़ी अनोखी बात।
माता देती तू रहे,नई नई सौगात।।
देख बुढाफ़ा माँ कहे, छोड़ न जाना साथ।
बार बार आशीष दे ,सिर पर रखकर हाथ।।
चरणों मे जिसके रहे, केवल माँ का ध्यान।
घर मंदिर सा वो लगे,मिले जहाँ नित ज्ञान ।
कितना सहती मात है,जग की झूँठी बात।
धोखा मिलता रोज ही,करे कपट छल घात।।
डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित
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