कम्मो की बातें,
बहोत निराली !
बहोत सियानी !
बहोत उन्मादी !
जब अम्मा कहती,
दूध लियाओ !
कम्मो जाकर ,
दही लेयाती !
कम्मो की जींभ ,
कैंची लगती !
च-च-च करती ,
चलती जाती !
जब बाबू कहता ,
घर में बैठो !
कम्मो भागकर ,
बाहर घूम आती!
कम्मो की गुड़िया ,
मिट्टी की पुड़िया ,
आधा -पूरा ,
देश झूम आती !
कम्मो की दादी ,
कहानी का पिटारा ,
हाथी घोड़ो से,
मिलवाती !
कम्मो के दोस्त ,
मुर्गी की तरह ,
जिनको कम्मो ,
नचाती -दोड़ाती!
कुछ भी कह लो ,
कुछ भी कर लो ,
पर कम्मो किसी को ,
समझ न आती !
नेहा राजपूत
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