साहित्य चक्र

09 May 2021

कम्मो


कम्मो की  बातें,
बहोत  निराली !
बहोत सियानी !
बहोत उन्मादी !
जब  अम्मा  कहती,
दूध  लियाओ !
कम्मो जाकर ,
दही  लेयाती !
कम्मो की  जींभ ,
कैंची लगती !
च-च-च  करती ,
चलती जाती !
जब बाबू  कहता ,
घर में बैठो !
कम्मो भागकर ,
बाहर घूम आती!
कम्मो की गुड़िया ,
मिट्टी की पुड़िया ,
आधा -पूरा ,
देश  झूम  आती !
कम्मो की  दादी ,
कहानी  का पिटारा ,
हाथी घोड़ो  से,
 मिलवाती !
कम्मो के दोस्त ,
मुर्गी की तरह ,
जिनको कम्मो ,
नचाती -दोड़ाती! 
कुछ भी कह लो ,
कुछ भी कर लो ,
पर कम्मो किसी को  ,
समझ न आती !

                        नेहा राजपूत

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