प्रतिरक्षण
‘प्रतिरक्षण’ टीका प्राप्त करने और टीकाकरण कराने के बाद रोग से प्रतिरक्षा बनने दोनों प्रक्रियाओं को उजागर करता है। प्रतिरक्षण प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का एक महत्वपूर्ण घटक है। वर्तमान में वैक्सीन बचाव योग्य रोगों से हर वर्ष होने वाली दो से तीन मिलियन मृत्यु को रोकता है।
टीकाकरण क्या है ?
‘टीकाकरण और प्रतिरक्षण’ दोनों शब्दों का उपयोग एक दूसरे के लिए किया जाता है। टीकाकरण एक एंटीजेनिक पदार्थ (वैक्सीन) के शरीर में लगाने की प्रक्रिया है। टीकाकरण न केवल संक्रामक रोगों से जुड़े रोगों और मौतों को रोका जाता है, बल्कि ये एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रसार को सीमित करने और रोकथाम योग्य रोगों और मृत्यु को कम करने में भी मदद करते हैं।
टीकाकरण क्यों महत्वपूर्ण है ?
टीकाकरण लोगों को हानिकारक रोगों से बचाने का एक सरल, सुरक्षित और प्रभावी उपाय है। टीकाकरण द्वारा पोलियो, डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टिटनेस और खसरा जैसी तकरीबन बीस रोगों को रोका जा सकता है। जब हम टीकाकरण करवाते हैं, तो हम न केवल अपनी सुरक्षा करते हैं, बल्कि अपने आसपास के लोगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करते है।
टीकाकरण
टीका एक जैविक मिश्रण है। जब व्यक्ति को टीका दिया जाता है तब यह हमारे शरीर की ‘प्रतिरक्षा प्रणाली यानि रोग प्रतिरोधक क्षमता’ को बढ़ाता हैं। जिसके माध्यम से संक्रामक एजेंट के खिलाफ एंटीबॉडीज का उत्पादन होता है। जब शरीर रोग के संपर्क में आता है, तब ये संक्रामक एजेंट के खिलाफ एंटीबॉडीज का उत्पादन करते है। जब हम किसी सूक्ष्मजीव व रोगाणु के संपर्क में आते हैं, तो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली तुरंत प्रतिक्रिया करती है और जल्द ही रोगाणु से लड़कर उसे नष्ट कर देती है।
टीके रोग का कारण नहीं हैं, क्योंकि उनमें केवल मृत, कमजोर रूप व किसी विशेष जीव (एंटीजन) के निष्क्रिय हिस्से होते हैं। जो कि हमारे शरीर के भीतर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करते हैं। कुछ टीकों के लिए अनेक खुराक लेने की आवश्यकता होती है। जिन्हें लंबे समय तक रहने वाले एंटीबॉडी के उत्पादन और स्मृति कोशिकाओं के विकास के लिए सप्ताह या महीनों के अंतराल पर दिया जाता है। टीकों को कई प्रकार से दिया जाता हैं। अधिकांश टीके इंजेक्शन द्वारा और कुछ मुंह, नाक से दिए जाते हैं।
टीके कैसे कार्य करते हैं ?
टीकाकरण प्रतिरक्षा प्रणाली को एंटीबॉडीज बनाने के लिए तैयार करता है। इसके समान जब शरीर सूक्ष्मजीव के संपर्क में आता है, तब हमारा शरीर एंटीबॉडीज बनाता है। टीकाकरण से हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़कर सूक्ष्म जीवों से लड़कर उन्हें खत्म करती है। इसलिए जब टीका दिया जाता है, तो प्रतिरक्षा प्रणाली निम्नलिखित तरीके से प्रतिक्रिया करती है।
1- यह हमारे शरीर में मौजूद सूक्ष्म जीव को पहचानती हैं। जैसे कि वैक्सीन में उपस्थित वायरस या बैक्टीरिया।
2- सूक्ष्म जीवों से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज का उत्पादन करती है और सूक्ष्म जीवों को याद रखती है।
3- भविष्य में यदि हम और आप इस तरह के सूक्ष्मजीव व रोगाणुओं के संपर्क में आता है, तो उस दौरान हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली प्रतिक्रिया कर उन्हें नष्ट करती है।
‘एंटीजन’ वायरस या बैक्टीरिया व उनके टोक्सिन और विषाक्त पदार्थों जैसे जीवों के घटक व अंश होते हैं।
एंटीबॉडीज हमारे शरीर द्वारा उत्पादित प्रोटीन हैं, जो कि विषाक्त पदार्थों व कार्यवाहक सूक्ष्म जीवों को बेअसर व नष्ट करते हैं। इसलिए हमारे शरीर में एंटीबॉडी विशिष्ट रोगों के लिए महत्वपूर्ण है।
टीकों के कितने प्रकार है ?
टीको के कई प्रकार हैं। जिसमें मुख्य कुछ इस प्रकार हैं-
1- संपूर्ण रोगजनक टीका (होल पैथोजन वैक्सीन)- ‘संपूर्ण रोगजनक टीका’ संपूर्ण रोगजनक युक्त होते हैं। जिन्हें मृत कर दिया जाता है या कमजोर कर दिया गया है ताकि ये रोग पैदा न कर सकें। मगर हमारे शरीर में प्रतिरक्षा क्षमता उत्पन्न कर सकें।
संपूर्ण रोगजनक टीका दो प्रकार के है।
निष्क्रिय जीव टीके या मरे हुए जीवों के टीके- निष्क्रिय टीके में मृत रोगजनक होते हैं। इस प्रकार के टीकों में रोगजनक को तापमान, रसायन, पराबैंगनी किरणों आदि के द्वारा निष्क्रिय कर दिया जाता है और फिर उसे हमारे शरीर में प्रवेश करवाया जाता है। उदाहरण- हेपेटाइटिस ए, रेबीज, निष्क्रिय पोलियो वायरस आदि।
जीवित तनुकृत दुर्बलित टीके व क्षीण टीके- इस टीके में वायरस व जीवाणु के प्रकार को कमज़ोर कर दिया जाता है। जिनके कारण रोग होता है। इस तरह के टीके कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। उदाहरण- बीसीजी (तपेदिक), ओरल पोलियो वैक्सीन, खसरा, मीजल्स रूबेला, रोटावायरस, पीला बुखार आदि।
2- उप-इकाई टीका (सबयूनिट वैक्सीन)- सबयूनिट वैक्सीनों में संपूर्ण रोगजनक के बजाय वायरस या जीवाणु का बेहद विशिष्ट भाग या घटक शामिल होता हैं, जो कि प्रतिरक्षा प्रणाली को अधिक बेहतर तरीके से बढ़ाते हैं। सबयूनिट वैक्सीन कई तरह के होते है। जैसे- प्रोटीन सबयूनिट वैक्सीन, पॉलीसैकराइड वैक्सीन एंड कंजुगेट सबयूनिट। सबयूनिट वैक्सीन इस प्रकार हैं- हीमोफिलियस इन्फ्लूएंजा टाइप बी, न्यूमोकोकल, हेपेटाइटिस बी, ह्यूमन पेपिलोमा वायरस।
3- आविष टीके (टॉक्साइड वैक्सीन)- यह टीके रोगाणु व जीवाणु द्वारा निर्मित विष युक्त होते हैं। जिसके कारण रोग पैदा होता है। यह रोगाणु व जीवाणु के उस हिस्से में प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करते हैं, जो कि जीवाणु उत्पन्न करने के बजाए किसी रोग का कारण बनते है। टॉक्साइड वैक्सीन का निर्माण आविष को रासायनिक व भौतिक रूप से परिष्कृत करके हानिरहित बनाया जाता है, जिन्हें टॉक्साइड के नाम से जाना जाता है। टॉक्साइड वैक्सीन इस प्रकार से हैं- डिप्थीरिया टॉक्साइड, टिटनेस टॉक्साइड।
4- न्यूक्लिक एसिड वैक्सीन- न्यूक्लिक एसिड वैक्सीन में रोग के खिलाफ सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा को बढ़ाने के लिए रोग पैदा करने वाले वायरस या जीवाणु से आनुवंशिक सामग्री का उपयोग किया जाता हैं। आनुवंशिक सामग्री डीएनए व आरएनए हो सकती है। यह अपेक्षाकृत एक नई तकनीक है, हालांकि कई डीएनए टीकों को पशुओं में उपयोग के लिए लाइसेंस प्राप्त है। जिसमें वेस्ट नाइल वायरस के खिलाफ हॉर्स वैक्सीन भी शामिल है।
5- वायरल जनित आधारित टीका (वायरल वेक्टर-बेस्ड वैक्सीन)- टीकों में वेक्टर या वाहक के रूप में हानिरहित वायरस व जीवाणु का उपयोग किया जाता है। वेक्टर के भीतर की आनुवंशिक सामग्री को कोशिकाओं में प्रवेश कराया जाता है। यह रोग के खिलाफ सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा को ट्रिगर करते हैं। वायरल वेक्टर वैक्सीन का उदाहरण इबोला के खिलाफ ‘रिकॉम्बिनेंट वेसिकुलर स्टोमाटाइटिस वायरस-ज़ैरे इबोला वायरस’ है।
वायरल वेक्टर-बेस्ड वैक्सीन दो प्रकार की है।
गैर-प्रतिकृति जनित टीका (नॉन रिप्लिकेटिंग वेक्टर वैक्सीन)- यह कोशिकाओं के भीतर प्रतिकृतियाँ तैयार नहीं कर सकते हैं।
प्रतिकृति जनित टीका (रिप्लिकेटिंग वेक्टर वैक्सीन)- यह कोशिकाओं के भीतर प्रतिकृतियाँ तैयार कर सकते हैं।
प्रतिरक्षा- प्रतिरक्षा शरीर की विशिष्ट संक्रामक रोग का प्रतिरोध करने की क्षमता है। यह तब विकसित होती है जब प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाएं हानिकारक सूक्ष्मजीव व रोगजनक के संपर्क में आती हैं। जैसे कि वायरस व जीवाणु। प्रतिरक्षा तंत्र एंटीबॉडी बनाते हैं और सफलतापूर्वक इनसे लड़ते हैं। प्रतिरक्षा में सहज प्रतिरक्षा व अधिग्रहित प्रतिरक्षा होती है।
जन्मजात या सहज प्रतिरक्षा- पक्ष्माभी, त्वचा, श्लैष्मिक झिल्ली, घ्राण रोम और शारीरिक स्राव जैसे सुरक्षात्मक तंत्र के साथ मनुष्य का जन्म होता है। यह समस्त सहज प्रतिरक्षा के रूप में कार्य करते हैं। इनकी प्रतिक्रियाएं किसी विशेष रोगजनक एजेंट के लिए विशिष्ट नहीं हैं और जन्मजात प्रतिरक्षा प्रणाली में स्मृति नहीं होती है।
अर्जित प्रतिरक्षा या उपार्जित प्रतिरक्षा- रोगजनक जन्मजात प्रतिरक्षा प्रणाली पर काबू प्राप्त कर लेता है, तो अर्जित प्रतिरक्षा या उपार्जित प्रतिरक्षा विकसित होने लगती है। यह वास्तविक रोग के लिए उत्तरदायी संक्रमण के माध्यम से विकसित होती है। जिसे प्राकृतिक प्रतिरक्षा के नाम से जाना जाता है। वैक्सीन में रोग का कारण बनने वाले किसी जीव के कुछ कमज़ोर व निष्क्रिय अंश होते हैं। यह हमारे शरीर के प्रतिरक्षा प्रणाली को संक्रमण की पहचान करने के लिए प्रेरित करते हैं और उनके खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी बनाते हैं।
अर्जित प्रतिरक्षा या उपार्जित प्रतिरक्षा- यह प्रतिरक्षा शरीर से रोगजनक की समाप्ति के बाद भी उपस्थित रहती हैं विशेषकर ‘स्मृति कोशिकाएं या मेमोरी सेल’। यदि भविष्य में शरीर दोबारा इस रोगजनक के संपर्क में आता है, तो ये उसके विरुद्ध कार्रवाई करके उसे समाप्त कर देती है।
‘सक्रिय प्रतिरक्षा और निष्क्रिय प्रतिरक्षा’ दो प्रकार के हैं।
सक्रिय प्रतिरक्षा- रोग के लिए उत्तरदायी सूक्ष्मजीवों के संपर्क में आने के बाद सक्रिय प्रतिरक्षा का उत्पादन होता है। प्रतिरक्षा प्रणाली उस रोग के लिए एंटीबॉडी के उत्पादन को ट्रिगर करती है। यह रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीवों के संपर्क में वैक्सीन की शुरुआत के माध्यम से या प्राकृतिक संक्रमण के द्वारा प्रकट होती है। प्रतिरक्षा प्रणाली भविष्य में हमारे शरीर में सूक्ष्मजीवों के कारण होने वाले रोगों को पहचानती है और एंटीबॉडी उत्पन्न करके उन्हें नष्ट करने का प्रयास करती है।
निष्क्रिय प्रतिरक्षा- निष्क्रिय प्रतिरक्षा तब प्राप्त होती है, जब कोई व्यक्ति स्वयं या स्वयं की प्रतिरक्षा प्रणाली के माध्यम से उन्हें उत्पन्न करने के बजाय किसी विशेष रोग से एंटीबॉडीज प्राप्त करता है। जैसे- बच्चे को जन्म से पहले बीजाण्डासन के माध्यम से और जन्म के बाद मां के दूध से एंटीबॉडी प्राप्त होते है। यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा बच्चे को उसके जीवन के शुरुआती वर्षों के दौरान कुछ संक्रमणों से बचाती है।
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