प्रधानमंत्री से सवाल करो तो लोग कहते हैं- भ्राता सकारात्मकता फैलाओ अभी सवाल पूछने का समय नहीं है। सिस्टम पर सवाल करता हूं तो लोग कहते हैं- यह सिस्टम हम सभी ने बनाया है। इसलिए सिस्टम पर सवाल करना उचित नहीं है। धर्म के ठेकेदारों से सवाल करो तो लोग कहते हैं- हम इंसानों ने इतना पाप कर दिया है कि भगवान (अल्लाह) भी हमसे नाराज हो गए हैं।
कभी-कभी समझ नहीं आता आखिर जिस प्रधानमंत्री को हमने वोट देकर चुना है, उससे हम सवाल क्यों नहीं कर सकते है ? क्या हमारा देश लोकतांत्रिक देश नहीं है ? अगर हमारा देश लोकतांत्रिक है तो फिर इस देश की जिम्मेदारी किसकी और किसके हाथों में है ? सत्ता पक्ष कहती है इस वक्त सरकार से सवाल पूछना सही नहीं है क्योंकि पूरा सिस्टम धराशाई हो चुका है। सिस्टम को धराशाई करने के लिए जिम्मेदार कौन लोग हैं ? क्या विपक्ष ने सिस्टम को धराशाई किया है ? पिछले 70 सालों की सरकारों ने सिस्टम को कमजोर और खोखला किया है तो फिर उस वक्त विपक्ष में रहे नेता और अन्य राजनीतिक पार्टियां क्या कर रही थी ? पिछले 70 सालों की सरकार ने सिस्टम को खोखला और कमजोर किया है तो फिर आज उन्हीं के बनाए हुए अस्पताल और मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर ही तो काम आ रही है। वर्तमान में बीजेपी की सरकार है। पिछले 7 सालों से बीजेपी ने मेडिकल या स्वास्थ के क्षेत्र में क्या काम किया है कोई बता सकता है ? वर्तमान सरकार द्वारा शुरू की गई आयुष्मान भारत योजना इस महामारी में जनता के काम क्यों नहीं आ रही है ? क्या आयुष्मान भारत योजना के तहत जनता को इस कोरोनावायरस महामारी में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोई सुविधा और छूट मिल रही है ? जब कोरोनावायरस नाम के संक्रमण ने पूरे विश्व में तबाही मचानी शुरू की थी तो फिर हमारी सरकार सो क्यों रही थी ? कोरोना महामारी काल के दौरान हमारे देश में कई राज्यों के चुनाव होते हैं। क्या सरकार इसके लिए जिम्मेदार नहीं है ? हजारों की भीड़ में हमारे देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी जोरदार भाषण देते थे और शाम को कोरोना से लड़ने के लिए देशवासियों से अपील करते थे। जब खुद प्रधानमंत्री जी हजारों की भीड़ में भाषण दे रहे हो, तो कैसे महामारी से हम लड़ सकते थे ? क्या हमारी सरकार ने इस महामारी को लेकर लापरवाही बरती थी ? सरकार ने हमारे डॉक्टरों को आगे रखकर इस महामारी की जिम्मेदारी क्यों नहीं दी ? अगर अभी भी हम वक्त रहते सत्ता में बैठे मौत के सौदागरों से सवाल नहीं करेंगे तो याद रखिए मौत आपके घर का दरवाजा जल्द ही खट्टखटाने वाली है।
सिस्टम में कौन लोग बैठे हैं ? मेरा अनुसार सिस्टम में आप और हम में से ही बैठे हैं। सिस्टम का इतना कमजोर और खोखला होना हम सभी देशवासियों की हार है। सिस्टम में बैठे अधिकारी और नौकरशाही लोग इसलिए सही से काम नहीं कर पाते क्योंकि हमारे देश में एक परंपरा बनी आई है, एक बार सरकारी नौकरी निकाल लो उसके बाद आराम ही आराम है। इसके अलावा सिस्टम में बैठे लोग भाई-भतीजावाद सबसे अधिक करते हैं, इसलिए सिस्टम खोखला और कमजोर नजर आता है। अब कुछ लोग व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के माध्यम से सिस्टम की कमजोर और खोखले के लिए आरक्षण को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। मैं उन लोगों से इतना ही कहना चाहूंगा कि आपको भारत सरकार से जवाब मांगना चाहिए आखिर सिस्टम के बड़े पदों पर कौन से लोग बैठे हैं ? सिस्टम का कमजोर और खोखला होना इसलिए सही है क्योंकि हमने अपनी सरकारों से आज तक कभी भी स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार को लेकर सवाल नहीं पूछे और ना ही हमने इन मुद्दों पर कभी वोट दिया है।
अगर सर्वशक्तिमान है तो फिर इस महामारी में भारत देशवासियों की मदद के लिए क्यों नहीं आ रहा है ? अगर हम इंसानों ने इस धरती पर इतना पाप कर दिया है तो फिर कण-कण में भगवान ईश्वर है वाला कथन यहीं पर खारिज हो जाता है। मैं उन धर्म ठेकेदारों से पूछना चाहता हूं जो धर्म के नाम पर लोगों को लड़ाते और धर्म के नाम पर खून बहाते हैं। आप लोगों ने अपने धर्म के लोगों की रक्षा के लिए क्या कदम उठाए ? आपके पास इकट्ठा हुआ धन से आपने कितने लोगों की मदद की और कितने अस्पताल, स्कूल और रोजगार के स्रोत खोले हैं ? अंतिम में मैं उन लोगों से सवाल करना चाहता हूं जो लोग धर्म और जात के नाम पर एक दूसरे को मारने और काटने पर उतर जाते हैं। अरे मूर्खो आपने इस महामारी के दौरान जात और धर्म पूछकर खून लिया ? आपने देखा कैसे लोग रो रहे हैं ? आपने देखा कैसी लाशें नदियों में तैर रही है ? इतना ही नहीं बल्कि अंतिम संस्कार के लिए भी श्मशान और कब्रिस्तान में भी लाइन लगी हुई है ? इसके बावजूद भी तुम अभी भी धार्मिक कट्टर बने हुए हो। वक्त रहते सुधर जाओ और समस्त समाज और देश के बारे में सोचो। आज कोई और इन चीजों का शिकार हो रहा है तो कल को आपका और हमारा नंबर भी जरूर आएगा।
दीप मदिरा
जिस व्यक्ति ने पहले ही आत्मनिर्भर बनने के लिए कह दिया हो वह क्या ही आम लोगो की सहायता करेंगे। "मन की बात" ही कहते रह जाएंगे, चिताओ चिताओ को देखते देखते।
ReplyDeleteजी वहीं तो बात है
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