देखो तो मेरी बगिया प्यारी ,
कितनी सुंदर है ये न्यारी ।
सुबह जब मैं उधर जाता,
मन मेरा प्रसन्न हो जाता ।
रवि किरणों का है कमाल,
दिखी ओंस की बूँदें लाल।
हवा से जब हिली डाली,
पंखुड़ियाँ ओंस से तब खाली।
रंग बिरंगे फूल खिले थे,
खुशबू से सब भरे पड़े थे।
पता नहीं कहाँ से आये,
भौंरे फूलों पर मंडराये।
गुन - गुन गाये सबने गीत,
निभाई अपनी पुरानी रीत।
कई रंगों की तितलियाँ अनेक,
मोहित हुईं फूलों को देख।
अनेक आकार-प्रकार के खग,
प्रातःकाल ही गये थे जग।
उम्मीदों के पंख फैलाकर,
घर से निकला पक्षी था हर।
फल - फूलों की डाली ऊपर,
मंगल गान गा रहा था हर।
गिलहरी चूहे कुत्ते बिल्ली,
बगिया घूमते मानों दिल्ली।
शीतल पवन बह रही थी मन्द,
चारों ओर फूलों की सुगन्ध।
बहुत सारी प्रजातियों की डाल,
फलों से लकदक पीली - लाल।
तितली-फूलों से सीखा मुस्काना,
पक्षी - भौंरों से सुमधुर गाना।
प्रकृति है शिक्षा का भण्डार,
मानव सीखता रहे हर बार।
बगिया सबके मन को भाती,
कोई चल कुछ उड़कर आती।
छुट्टी रहती जिस दिन हमारी,
दादा - दादी संग बनाते क्यारी।
निराई-गुड़ाई और खाद-पानी,
करते कैसे संग रहकर जानी।
-डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
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