साहित्य चक्र

29 May 2021

टूट गए ख्वाब सब




जिंदगी के अस्त-व्यस्त, हो गए हिसाब सब
जितने भी हसीन थे वे टूट गए ख्वाब सब
क्यों तनाव का ये रूख, मेरे ही ओर हो गया
खुशियों की जगह क्यों गमों का ये शोर हो गया
क्यों नसीब भी मेरे खिलाफ ही खड़ा हुआ
भाग्य क्यों है रूठा ये क्यों कठोर हो गया
सवालों से घिरे हैं हम, मिलते नहीं जवाब सब
जितने भी हसीन थे वे टूट गए ख्वाब सब

अर्से से एक पुकारती, रंगीन राह थी हमें
कल तलक निहारती कोई निगाह थी हमें
जिसकी हमें तलाश थी वो ही नहीं है मिल सका
दिल में मेरे तो सदा बस प्यार की ही चाह थी
अच्छा -अच्छा मानते ही हो गया खराब सब
जितने भी हसीन थे वे टूट गए ख्वाब सब

                                                विक्रम कुमार


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