साहित्य चक्र

02 May 2021

जनता ने अहंकार की फूंक दी उतार


बहुत जोर लगाया उन्होंने
दीदी ओ दीदी जोर जोर से बुलाया
जनता ने भाई की आवाज नहीं सुनी
एक बार दीदी को फिर ताज पहनाया
एक तरफ थी अकेली नारी
दूसरी तरफ थी पूरी सरकार
सत्ता प्राप्त करने के लिए
हो रही थी घटिया तकरार
दोनों ओर से हो रहे थे प्रहार
कोई भी मानने को नहीं था हार
दीदी ने खेला कर दिखाया
दीदी हुई हुई सौ के पार
जनता ने दिखा दिया सब को
झूठ पर होता है हमेशा सच्च भारी
हराने के लिए सबने लगा लिया ज़ोर पूरा
सब पर पड़ गई भारी इक नारी
झूठ एक बार सबको भटकाता है
गलत राह पर लेकर जाता है
सच्च का मुकाबला कोई नहीं कर सकता
झूठ तो सबको रुलाता है
लोकतंत्र में जनता बादशाह है
जिसको चाहे उसको सत्ता दिलाती है
खाक में मिला देती है हेकड़ी पल में
बड़े बड़ों को औकात दिखाती है
दीदी ने ऐसा किया राजनीति में वार
दो सौ तो दूर बहुत नहीं पहुंचे सौ के पार
शीशा जो कह रहा था वो देख नहीं पाये
जनता ने अहंकार की फूंक दी उतार

                                               रवींद्र कुमार शर्मा


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